Monday, 31 August 2020

story of khatushyam ji

राजस्थान में है कृष्ण के इस अवतार का प्रसिद्ध मंदिर, एक बाण से तीनो लोको पर विजय प्राप्त का था वरदान, ये है यहां की मान्यता

राजस्थान में है कृष्ण के इस अवतार का प्रसिद्ध मंदिर, एक बाण से तीनो लोको पर विजय प्राप्त का था वरदान, ये है यहां की मान्यता

सीकर।

राजस्थान इन दिनों पूरी तरह से श्याम रंग में रंगा हुआ है। मौका है राजस्थान के शेखावाटी में स्थित खाटू श्याम जी के फाल्गुन मेले (Falgun Mela 2019) का। पूरे देश से भगवान श्याम के जयकारों और भगवा निशानों के साथ लाखों भक्त खाटू वाले की धुन में आगे बढ़े जा रहे हैं। आइए आज आपको बताते हैं आखिर क्यों है खाटू श्याम जी की इतनी मान्यता और ग्यारस के दर्शन का इतना महत्व।

 

राजस्थान के सीकर जिले में प्रसिद्ध खाटू ग्राम है इसी कस्बे में बाबा श्याम का विश्व विख्यात मंदिर है। कलयुग के अवतार कहे जाने वाले खाटू श्याम जी (Khatu Shyam Ji) की मान्यता बरसों से चली आ रही है। खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण का ही एक अवतार माना गया है। श्रद्धालुओं की बाबा श्याम के प्रति बहुत गहरी आस्था है जिसके चलते यहां हर साल लगने वाले फाल्गुन मेले में लाखों लोग दर्शन करने आते हैं। अतिशोक्ति नहीं होगी अगर खाटू मेले को राजस्थान का सबसे बड़ा मेला भी कहा जाए। मेले में राजस्थान के अलावा पूरे देश से यहां तक की विदेशी सैलानी भी खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं।

 

ये है खाटू श्याम जी की पूरी मान्यता (Khatu Shyam Ji Story In Hindi)

खाटू श्याम बाबा के मंदिर की इन मान्यताओं के पीछे महाभारत काल की एक पौराणिक कथा है। द्वापर के अंतिम चरण में हस्तिनापुर में कौरव एवं पांडव राज्य करते थे। पाण्डवों के वनवासकाल में भीम का विवाह हिडिम्बा के साथ हुआ। उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच रखा गया। पाण्डवों का राज्याभिषेक होने पर घटोत्कच का कामकटंककटा के साथ विवाह और उससे बर्बरीक का जन्म हुआ और बर्बरीक को भगवती जगदम्बा से अजेय होने का वरदान प्राप्त था।

 

जब महाभारत युद्ध की रणभेरी बजी, तब वीर बर्बरीक ने युद्ध देखने की इच्छा से कुरुक्षेत्र की ओर प्रस्थान किया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े। इस दौरान मार्ग में बर्बरीक की मुलाकात भगवान श्री कृष्ण से हुई। ब्राह्मण भेष धारण श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हंसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में शामिल होने आए हैं।

 

कृष्ण की ये बात सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उनका केवल एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए काफी है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लिया गया तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश हो जाएगा। यह जानकर भगवान कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ। परीक्षा स्वरूप बर्बरीक ने पेड़ के प्रत्येक पत्ते को एक ही बाण से बींध दिया तथा श्री कृष्ण के पैर के नीचे वाले पत्ते को भी बींधकर वह बाण वापस तरकस में चला गया। इस दौरान उन्होंने (कृष्ण) पूछा कि वे (बर्बरीक) किस तरफ से युद्ध में शामिल होंगे। तो बर्बरीक ने कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा वे उसी की तरफ से युद्ध में शामिल होंगे। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा।

 

इसीलिए ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की और उनसे शीश का दान मांगा। वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं मांग सकता है, अत: ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये।

 

श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने का कारण समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है; इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। इस दौरान बर्बरीक ने महाभारत युद्ध देखने कि इच्छा प्रकट की। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। श्री कृष्ण ने उस शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये।

 

श्रीकृष्ण ने दिया था खास वरदान, ये है मंदिर का इतिहास (Khatu Shyam Mandir History In Hindi)

श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर वीर बर्बरीक के शीश को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी। स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट होकर अपने कृष्ण विराट सालिग्राम श्री श्याम रूप में सम्वत 1777 में निर्मित वर्तमान खाटू श्याम जी मंदिर में भक्तों कि मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं।

 

एक बार खाटू नगर के राजा को सपने में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए कहा। इस दौरान उन्होंने खाटू धाम में मन्दिर का निर्माण कर कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया।

 

वहीं मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, तब से आज तक मंदिर की चमक यथावत है। मंदिर की मान्यता बाबा के अनेक मंदिरो में सर्वाधिक रही है।

Sunday, 30 August 2020

karni Matta deshnok bikaner

करणी माता का मन्दिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है जो राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है। इसमें देवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से ३० किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है। करणी माता का जन्म चारण कुल में हुआ यह मन्दिर चूहों का मन्दिर भी कहलाया जाता है। मन्दिर मुख्यतः काले चूहों के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र मन्दिर में लगभग २०००० काले चूहे रहते हैं। [1][2] [2] मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।

करणी माता मन्दिर

करणी माता मन्दिर





नाम
अन्य नाम:करणी माँ का मन्दिर
मुख्य नाम:करणी माता मन्दिर
देवनागरी:करणी माता मंदिर
स्थान
देश: भारत,
राज्य:राजस्थान
जिला:बीकानेर
स्थिति:देशनोक
स्थापत्य शैली एवं संस्कृति
स्थापत्य शैलियाँ:मुगल वास्तुकला और राजपूती
इतिहास
निर्माण तिथि:१५वीं - २०वीं शताब्दी
सृजनकर्त्ता:महाराजा गंगा सिंह

श्रद्धालुओं का मत है कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।

संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचते ही चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह जाता है। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं।

चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।

कथा के अनुसारसंपादित करें

करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है।

करणी जी का अवतरण चारण कुल में वि. सं. १४४४ अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार तदनुसार २० सितम्बर, १३८७ ई. को सुआप (जोधपुर) में मेहाजी किनिया के घर में हुआ था। करणीजी ने जनहितार्थ अवतार लेकर तत्कालीन जांगल प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया। करणीजी ने ही राव बीका को जांगल प्रदेश में राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया था। करणी माता ने मानव मात्र एवं पशु-पक्षियों के संवर्द्धन के लिए देशनोक में दस हजार बीघा 'ओरण' (पशुओं की चराई का स्थान) की स्थापना की थी। करणी माता ने पूगल के राव शेखा को मुल्तान (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) के कारागृह से मुक्त करवा कर उसकी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका से संपन्न करवाया था। करणीजी की गायों का चरवाहा दशरथ मेघवाल था। डाकू पेंथड़ और पूजा महला से गायों की रक्षार्थ जूझ कर दशरथ मेघवाल ने अपने प्राण गवां दिए थे। करणी माता ने डाकू पेंथड़ व पूजा महला का अंत कर दशरथ मेघवाल को पूज्य बनाया जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है ।[1]

वास्तुकलासंपादित करें

इस मन्दिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने [[राजपूती[[ और मुगली शैली में लगभग १५-२०वीं सदी में करवाया था। मन्दिर के सामने महाराजा गंगा सिंह ने चांदी के दरवाजे भी बनाए थे। देवी की छवि अंदरूनी गर्भगृह में निहित है। मन्दिर में १९९९ में हैदराबाद के कुंदन लाल वर्मा ने भी कुछ मन्दिर का विस्तार किया था।

आवागमनसंपादित करें

मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही है यह मंदिर। वर्ष में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता है। तब भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं भी हैं।

Saturday, 29 August 2020

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दिल्ली में है एक भूतिया पेड़! पेड़ पर भूत रहते हैं और इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी ने खुद माना कि यहाँ कुछ 

Ghost Living On Tree In Delhi

आज हम विज्ञान के दौर में बेशक जी रहे हैं लेकिन कुछ बातें ऐसी जरुर हैं जिन्हें विज्ञान भी हल नहीं कर पाया है.

भूत-प्रेत की दुनिया का राज आज भी यह नहीं हल कर पाया है. विज्ञान कहता है कि यह कुछ लोगों का मात्र भ्रम है लेकिन इंसान कहता है कि नहीं यह भ्रम नहीं है.

देश के दिल दिल्ली के द्वारका सेक्टर 9 में एक ऐसी ही जगह है जहाँ पर भूतों का साया बताया जाता है.

अक्सर रात को यहाँ से गुजरने वालों से एक औरत का साया लिफ्ट मांगता है. कुछ लोग बताते हैं कि उन्होंने उस महिला को लिफ्ट दी भी है और वह थोड़ी दूर जाकर गायब हो जाती है. किन्तु अगर कोई उसको लिफ्ट नहीं देता है तो वह काफी देर तक उस गाड़ी का पीछा करती है.

कहाँ है यह जगह

दिल्ली के द्वारका में सेक्टर 9 मेट्रो स्टेशन के पास यह जगह है.

रास्ते पर दो पेड़ हैं जिन पर किसी आत्मा का वास बताया जाता है. यहाँ एक पेड़ पीपल का और दूसरा पेड़ नीम का है और दोनों ही पेड़ एक दूसरे से मिले हुए हैं. पेड़ के चारों ओर एक चबूतरे का निर्माण कर दिया गया है और उस पर ईश्वर की मूर्तियाँ भी रखी हुई हैं.

रात के समय बताया जाता है कि अक्सर यहाँ पर कुछ नजर आता है. जो या तो पेड़ पर बैठा होता है या फिर कई बार सड़क पर चलती गाड़ियों से लिफ्ट भी मांगता है. कुछ बाइक वाले दावा भी करते हैं कि उन्होंने उस साए तो लिफ्ट भी दी है और कुछ दूर जाकर वह खुद बाइक से गायब हो गयी थी.

जहाँ पर पेड़ है वहां एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है जिसके बाहर दो पहरेदार बैठे हुए हैं लेकिन मंदिर बंद ही रहता है. आप बेशक इस बात को मजाक में ले सकते हैं और आप बोल सकते हैं कि यह अंधविश्वास को बढ़ावा देना है लेकिन आप अगर यहाँ रात के 12 बजे जाते हैं तो आपको यहाँ जरूर कुछ नकारात्मक शक्ति का आभास होगा.

हुआ था एक हादसा और तब

कहते हैं कि काफी पहले यहाँ एक हादसा हुआ था.

एक माँ अपने बच्चे के साथ इस रास्ते से गुजर रही थी तो दोनों को एक कार ने दुर्घटना में घायल कर दिया था. तब माँ ने रास्ते से गुजरते हुए लोगों से मदद मांगी थी और किसी ने भी तब उस महिला की मदद नहीं की थी. इस हादसे में तब दोनों की मृत्यु हो गयी थी. तबसे उस महिला का साया यहाँ बताया जाता है और वह यहाँ से गुजरते लोगों से मदद मांगती रहती है.

इस कहानी को यहाँ के निवासी लोग बताते हैं. यह लोग कहते हैं कि काफी सारे अख़बारों ने इस बात को छापा तब छापा था.

इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी जब यहाँ आई

रात के समय जब इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी यहाँ आई थी तब वह खुद बताती है कि यहाँ पर कुछ अजीब जरूर लगा था. कुछ फोटोज में परछाई नजर आ रही थी. इन्होनें जब रास्ते पर राख डाली तो कुछ पैरों के निशान भी इन लोगों को नजर आए थे. साथ ही साथ यहाँ की हवा भी कुछ ज्यादा ही अजीब लगी थी.

तो अब आप अगर कभी इस रास्ते से निकलें तो ध्यान जरूर रखें और अगर आपको कुछ नजर आये तो उसको नजरअंदाज करने की कोशिश तो बिल्कुल भी ना करें.

Thursday, 27 August 2020

story of kuldhara

शाम ढलते ही यहां दिखाई देता है रूहानी ताकतों का रहस्यमय संसार, एेसा खौफनाक है इतिहास

यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं। गांव के कुछ मकान हैं जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है।

शाम ढलते ही यहां दिखाई देता है रूहानी ताकतों का रहस्यमय संसार, एेसा खौफनाक है इतिहास

नई दिल्ली: दुनियाभर में कई ऐसी जगह हैं, जो अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओं को समेटे हुए हैं। ऐसी ही एक घटना हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गांव की है। यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा हैं। गांव के कुछ मकान हैं जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है। दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं और दिखाई होता है रूहानी ताकतों का एक रहस्यमय संसार। लोग कहते हैं, कि रात के वक्त यहां जो भी आया वो हादसे की शिकार हो गया।

रियासत के दीवान की पड़ी बुरी नजर

दरअसल, कुलधरा की कहानी शुरू हुई थी आज से करीब 200 साल पहले, जब यह खंडहर में नहीं तब्दील हुआ था। यहां आसपास के 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणों से आबाद हुआ करते थे, लेकिन फिर कुलधरा को किसी की बुरी नजर लग गई और वो शख्स था रियासत का दीवान सालम सिंह। गांव के एक पुजारी की बेटी पर सालेम सिंह की बुरी नजर पड़ी और वो खूबसूरत लड़की जैसे सालेम सिंह की जिद बन गई। सालेम सिंह ने उस लड़की से शादी करने के लिए गांव के लोगों को चंद दिनों की मोहलत दी।

पांच हजार परिवारों ने छोड़ दी रियासत

ये लड़ाई अब गांव की एक कुंवारी लड़की के सम्मान और गांव के आत्मसम्मान की थी। गांव की चौपाल पर पालीवाल ब्राह्मणों की बैठक हुई और 5000 से ज्यादा परिवारों ने अपने सम्मान के लिए रियासत छोड़ने का फैसला ले लिया। अगली शाम कुलधरा कुछ यूं वीरान हुआ कि आज परिंदे भी उस गांव की सरहदों में दाखिल नहीं होते।

रूहानी ताकतों के कब्जे में है गांव


कहते हैं गांव छोड़ते वक्त उन ब्राह्मणों ने इस जगह को श्राप दिया था। जब से आजतक ये वीरान गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में है, जो अक्सर यहां आने वालों को अपनी मौजूदगी का अहसास भी कराती हैं। इस गांव में एक मंदिर है और एक बावड़ी है, जो आज भी श्राप से मुक्त है। बताया जाता है कि शाम ढलने के बाद अक्सर यहां कुछ आवाजें सुनाई देती हैं। लोग मानते हैं कि वो आवाज 18वीं सदी का वो दर्द है जिनसे पालीवाल ब्राह्मण गुजरे थे।

Wednesday, 26 August 2020

story of OM banna

राजस्थान का चमत्कारी मंदिर जिसमें बुलेट की हाेती है पूजा, यहां हर वाहन चालक लगाता है धाेक

जयपुर/पाली। पाली व रोहट के बीच बाण्डाई गांव के पास स्थित है ओम बन्ना देवल। एक एेसा स्थान जहां एक बाइक (बुलेट) की पूजा होती है। यहां बने ओम बन्ना देवल पर पाली-जोधपुर मार्ग पर जाने वाला कोई वाहन चालक मत्था टेकना नहीं भूलता है। आज यह स्थान आेम बन्ना देवल के साथ बुलेट वाले बन्ना के नाम भी जाना जाता है। अब तो लोग घर में मांगलिक कार्य होने पर यहां धोक लगाने (जात देने) भी आते है। कई मन्नत मांगने तो कई मन्नत पूरी होने का बताकर यहां वर्ष में एक-दो बार नहीं कई बार आने की बात भी कहते है। पाली आैर जोधपुर ? के साथ आस-पास निवास करनेव वाले तो अवकाश होते ही ओम बन्ना देवल के दरबार में धोक लगाने पहुंचते है।

 

सड़क हादसे में हुआ था ओम बन्ना का देवलोकगमन
चोटिला गांव के रहने वाले ओम बन्ना का देवलोकगमन 1988 में देवल वाले स्थल पर ही उगे एक पेड़ से बाइक टकराने के कारण हुआ था। उनके पुत्र महान पराक्रमसिंह का कहना है कि उनके पिता जीवन काल में समाजसेवा के लिए समर्पित थे। हमेशा लोगों की सहायता करते थे। उनके देवलोगमन के बाद उनकी बाइक पुलिस थाने में अपने आप स्टार्ट हो गई थी। उन्होंने निधन के दो-तीन बाद ही अपनी मां को सपने में आकर देवलोकगमन स्थल पर देवल बनाने को कहा। इसके बाद यहां देवल की स्थापना की गई। जो आज लोगों की आस्था का केन्द्र बन गया है।

ओम बन्ना देवल पर सुबह सवा सात बजे होती है आरती
ओम बन्ना देवल पर सुबह सात बजे आरती की जाती है। इसके बाद शाम को भी सात बजे आरती की जाती है। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है। आरती व पूजन यूं तो ओम बन्ना के परिजन ही करते है। कई बार उनके नहीं पहुंचने पर एक ब्राह्मण की ओर से आरती की जाती है। आरती करते समय घंटे-घडि़याल के साथ ही ढोल व थाली भी बजाए जाते है। यहां बैठे ठोल वाले ओम बन्ना के भजन गाते है। यहां धूप-दीप करने के लिए भी गांव के ही कुछ लोग लगे हुए है।

हर मनाेकामना पूरी करते हैं बुलेट बाबा
ओम बन्ना देवल पर आने वाले अधिकांश श्रद्धालु मन्नत मांगने या मन्नत पूरी होने की बात करते है। सूरज, नागौर क्षेत्र, मध्य प्रदेश से आए श्रद्धालुओं से बात करने पर उन्होंने ओम बन्ना देवल आने के बाद उनकी इच्छा पूरी होने की बात की। कई लोग अपने मित्रों व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ओम बन्ना के बारे में पढक़र देवल पर मत्था टेकने की बात कही। ओम बन्ना देवल पर आने वाले श्रद्धालुओं से बातचीत में एक ही बात सामने आई कि ओम बन्ना उनकी इच्छा पूरी करते है।

अपने आप थाने से देवल पर आ गई थी बाइक !
एक श्रद्धालु ने बाइक अपने आप देवल पर आने की बात कही, लेकिन इसके बाद नकार दिया। हालांकि यह किवदंती हर कोई बताता है कि ओम बन्ना के देवलोक गमन के बाद उनकी बाइक अपने आप पुलिस स्टेशन से देवल पर आई थी। एक बुजुर्ग से बात करने पर उनका कहना था कि ओम बन्ना ने उनको उम्मीद से ज्यादा दिया है। इस कारण वे परिवार के साथ यहां आते है। ओम बन्ना के देवलोक गमन होने के समय केरला थाना हुआ करता था। जबकि रोहट में पुलिस चौकी थी। वहां का स्टॉफ तीस वर्ष में बदल चुका है। इसके बावजूद वहां कुछ लोगों को आेम बन्ना के सम्बन्ध में किवदंती पता है, लेकिन उस समय मौजूद नहीं होने के कारण वे स्पष्ट नहीं बताते है.

story of bhangarh

Bhangarh :- 'भूतों का गढ़' कहलाता है राजस्थान का ये गांव, शाम ढलने के बाद हो जाती है लोगों की आवजाही बंद

अलवर।

राजस्थान के जयपुर जिले से करीब 80 किलोमीटर दूर अलवर जिले में स्थित भानगढ़ का किला (Bhangarh Fort) लोगों के लिए हमेशा से कोतूहल का विषय (Story Of Bhangarh) रहा है। इस किले से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही सरिस्का नेशनल पार्क स्थित है।

 

किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक्काशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा किला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा।

 

भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। पुरातत्व विभाग ने यहां आने बाले पर्यटकों को सख्त हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में कोई भी व्यक्ति नहीं रुके।

 

ये है किले का इतिहास (Bhangarh Fort Story In Hindi)

भानगढ़ की कहानी रहस्यमयी और बड़ी ही रोचक है। 1573 में आमेर के राजा भगवंत दास ने भानगढ़ क़िले का निर्माण करवाया था। किला बसावट के 300 सालों बाद तक आबाद रहा। 16वीं शताब्दी में राजा सवाई मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने भानगढ़ किले को अपना निवास बना लिया।

 

एक श्राप के कारण बना 'भूतों का भानगढ़'

कहते हैं कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत खुबसूरत थी। उस समय राजकुमारी खूबसूरती की चर्चा पूरे राज्य में थी। कई राज्यों से रत्नावती के लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकली। बाजार में वह एक इत्र की दुकान पर पहुंची और इत्र को हाथ में लेकर उसकी खूशबू सूंघ रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ दूरी सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा हो कर राजकुमारी को निहार रहा था। सिंघीया उसी राज्य का रहने वाला था और वह काले जादू में महारथी था।

 

कथित रूप से राजकुमारी के रूप को देख तांत्रिक मोहित हो गया था और राजकुमारी से प्रेम करने लग गया और राजकुमारी को हासिल करने के बारे में सोचने लगा। लेकिन रत्नावती ने कभी उसे पलटकर नहीं देखा।

 

जिस दुकान से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था उसने उस दुकान में जाकर रत्नावती को भेजे जाने वाली इस की बोतल पर काला जादू कर उस पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया। जब राजकुमारी को सच्चाई पता चल गई, तो उसने इत्र की शीशी पास ही एक पत्थर फेंक दी। इससे शीशी टूट गई और इत्र बिखर गया।

 

काला जादू होने के कारण पत्थर सिंधु सेवड़ा के पीछे हो लिया और उसे कुचल डाला। सिंधु सेवड़ा तो मर गया, लेकिन मरने से पहले उस तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे और दुबारा जन्म नहीं लेंगे। उनकी आत्मा इस किले में ही भटकती रहेंगी। आज 21वीं सदी में भी लोगों में इस बात को लेकर भय है कि भानगढ़ में भूतों का निवास है।

 

सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को खुदाई के बाद सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रहा था। अब किला भारत सरकार की देख रेख में आता है। किले के चारों तरफ आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती है। एएसआई ने सूर्यास्त बाद किसी के भी यहां रुकने को प्रतिबंधित कर रखा है।