Saturday, 30 January 2021
कहानी अश्वत्थामा की
कहानी गोविंद देव जी की
जयपुर। पांच हजार साल पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपोत्र व मथुरा नरेश ब्रजनाभ की बनवाई गई गोविंद देवजी की मूर्ति ने जयपुर को भी वृंदावन बना दिया। राधारानी और दो सखियों के संग विराजे गोविंददेव जी को कनक वृंदावन से सिटी पैलेस परिसर के सूरज महल में विराजमान किया गया। औरंगजेब के दौर में देवालयों को तोडऩे के दौरान चैतन्य महाप्रभु के शिष्य शिवराम गोस्वामी राधा गोविंद को वृंदावन से बैलगाड़ी में बैठाकर सबसे पहले सांगानेर के गोविंदपुरा पहुंचे थे।
आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में राधा गोविंद का भव्य मंदिर बनवाने के बाद गोविंदपुरा को गोविंददेवजी की जागीर में दे दिया था। जयसिंह द्वितीय ने जयपुर बसाया तब राधा गोविंद जी को सिटी पैलेस के सूरज महल में ले आए। राधा गोविंद देव जी के वृंदावन से जयपुर में विराजमान होने के बाद ब्रज क्षेत्र में राधा कृष्ण की भक्ति का प्रचार करने वाले कई सम्प्रदायों के पीठ भी यहां आ गए।
मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में बनवाया मंदिर
करीब पांच हजार साल पहले बनी गोविंददेवजी और पुरानी बस्ती की गोपीनाथजी की मूर्तियों को करीब 480 साल पहले चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी आदि ने वृंदावन के गोमा टीले में से निकाला था। आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में मंदिर बनवाया। मंदिर निर्माण के लिए आमेर से कल्याणदास, माणिकचन्द चौपड़ा, विमलदास आदि कारीगरों को वृंदावन भेजा गया। राधा रानी को भी उड़ीसा से लाकर गोविंद के साथ विराजित किया गया। गोविंद के जयपुर आने पर राधा माधव गौड़ीय परम्परा में राधा दामोदर और गोपीनाथजी आदि के मंदिर बने जिनमें गोविंद भक्ति की रसधारा बहने लगी।
विश्व का सबसे बड़ा अश्वमेघ यज्ञ जयपुर में
देवर्षि कलानाथ शास्त्री के मुताबिक चैतन्य महाप्रभु की परम्परा के संत जयपुर को दूसरा वृंदावन भी मानते हैं। निम्बार्क संतों ने परशुरामद्वारा को निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ बनाया। ब्रह्मपुरी में गोकुलनाथ जी मंदिर और परशुरामद्वारा में बलदेव कृष्ण का मंदिर निम्बार्क सम्प्रदाय का है। सवाई जयसिंह द्वितीय ने निम्बार्क आचार्यो की सलाह पर विश्व का सबसे बड़ा अश्वमेघ यज्ञ जयपुर में सम्पन्न कराया।
वृंदावन से आई लाडलीजी
श्रीनाथजी का बल्लभ सम्प्रदाय, हित हरिवंशीय समाज, शुक व ललित सम्प्रदाय की परम्परा के संतों ने राधा कृष्ण भक्ति की अलख जगाई। आठ प्रिय सखियों संग वृंदावन से आई लाडलीजी (राधारानी) का रामगंज में मंदिर बना। भागवत पुराण में नंदबाबा के संग श्री कृष्ण के आमेर में अम्बिका वन आने के प्रसंग ने भी जयपुर में कृष्ण भक्ति को बढ़ाया।
मीरा की कृष्ण प्रतिमा की जगत शिरोमणि मंदिर में स्थापना
चितौडगढ़ के किले में मीरा की कृष्ण प्रतिमा को वर्ष 1656 में आमेर के जगत शिरोमणि मंदिर में स्थापना से भी कृष्ण भक्ति ऊंचाइयों पर पहुंची। पंडित युगल किशोर शास्त्री के प्रेम भाया मंडल के ढूढाड़ी भजन आज भी बुजुर्गो की जबान पर है।
story nahargarh fort
भूत के खौफ से रुक गया था इस किले का काम, खास रानियों के लिए बने थे कमरे
कहानी सारंगपुर हनुमानजी की
इस अनोखे मंदिर में महाबली हनुमान जी के चरणों में नारी रूप में हैं शनि देव
शनि देव को सबसे क्रोधित देवता माना जाता है। कहा जाता है कि इनकी बुरी दृष्टि किसी व्यक्ति पर पड़ जाए तो उसके जीवन में परेशानियां आने लगती है। हमारे हिन्दू ग्रंथों में माना गया है जो भी व्यक्ति भगवान हनुमान जी की भक्ति करता है, उस पर शनि देव का प्रकोप नहीं रहता है। कहा जाता है कि महाबली हनुमान के आगे शनि देव भी कुछ नहीं कर पाते हैं।
आज हम आपको ऐसा मंदिर के बारे में बताएंगे जहां शनि देव महाबली हनुमान जी के चरणों में नारी रूप में हैं। अब सवाल ये भी उठता है कि आखिर वह कौन सा कारण था कि शनि देव को नारी रूप धारण करना पड़ा और महाबली हनुमान जी को चरणों में बैठना पड़ा? भारत में ऐसा मंदिर कहा है? तो अइये जानते हैं....
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार धरती पर शनि देव प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। शनि देव की बुरी दृष्टि से मानव तो मानव देवता भी बहुत परेशान हो गए थे। इसके बाद सभी ने शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए महाबली हनुमान जी को याद किया और उनसे रक्षा की गुहार लगाई। भक्तों की गुहार पर हनुमान जी ने शनि देव को सजा देने के लिए निकल पड़े।
जब इस बात की जानकारी शनि देव को लगी तो वो भयभीत हो गए। क्योंकि उन्हें पता था कि हनुमान जी के गुस्से से कोई रक्षा नहीं कर पाएगा। कथाओं के अनुसार, शनि देव हनुमान जी के गुस्से बचने के लिए उपाय निकाला और नारी का रूप धारण कर लिया।
सभी जानते हैं कि हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं और वे किसी स्त्री पर हाथ नहीं उठाते, ना ही बुरा बर्ताव करते। बस यही सोच कर शनि देव ने हनुमान जी से बचने के लिए नारी का रूप धराण कर लिए और भगवान हनुमान से उनके चरणों में शरण मांग ली। हनुमान जी को इस बात की जानकारी हो गई थी शनि देव ही स्त्री का रूप धारण किए हुए हैं। इसके बावजूद हनुमान जी ने शनि देव को नारी रूप में माफ कर दिया। उसके बाद शनि देव ने हनुमान जी के भक्तों पर से अपना प्रकोप हटा लिया।
गुजरात के भावनगर में है मंदिर
ऐसा मंदिर गुजरात के भावनगर स्थि सारंगपुर गांव में है। इस प्रचीन हनुमान मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में हनुमान जी का दर्शन करने आता है और भक्ति करता है, उसके ऊपर से शनि देव का प्रकोप दूर हो जाता है। माना ये भी जाता है कि शनिदेव हनुमान जी के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते हैं।
Wednesday, 27 January 2021
पांडुपोल हनुमान मंदिर की कहानी
पांडुपोल हनुमान : अलवर में हनुमान ने भीम को दिए थे दर्शन, भीम ने गदा के प्रहार से तोड़ डाला था पहाड़
अलवर. Pandupol Hanuman Temple : Bheem And Hanuman Story In Hindi
अलवर जिले के ( Sariska Tiger Reserve ) सरिस्का बाघ परियोजना के अंर्तगत ( Pandupol Hanuman ) पांडुपोल हनुमान जी लक्खी मेला शुरु हो गया है। वहीं मंदिर में मुख्य भर मेला मंगलवार को है। ( Pandupol Temple ) पांडूपोल हनुमान मंदिर में लक्खी मेले के अवसर पर करीब 50 हजार श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। पांडूपोल हनुमान मंदिर अलवर शहर के करीब 55 किलोमीटर दूर है। सरिस्का के बीचों-बीच स्थित इस हनुमान मंदिर का इतिहास महाभारत काल से है। किवदंती है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान भीम ने अपनी गदा से पहाड़ में प्रहार किया था, गदा के एक वार से पहाड़ टूट गया और पांडवों के लिए रास्ता बन गया।
बजरंग बली ने भीम को दिए थे दर्शन
पांडूपोल में बजरंग बली ने भीम को दर्शन दिए थे। महाभारत काल की एक घटना के अनुसार इसी अवधि में द्रौपदी अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी । एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुन्दर पुष्प आया द्रोपदी ने उस पुष्प को प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे अपने कानों के कुण्डलों में धारण करने की सोची। स्नान के बाद द्रोपदी ने महाबली भीम को वह पुष्प लाने को कहा तो महाबली भीम पुष्प की खोज करता हुआ जलधारा की ओर बढऩे लगा। आगे जाने पर महाबली भीम ने देखा की एक वृद्ध विशाल वानर अपनी पूंछ फैला आराम से लेटा हुआ था। वानर के लेटने से रास्ता पूर्णतया अवरुद्ध था ।
यहां संकरी घाटी होने के कारण भीमसेन के आगे निकलने के लिए कोई ओर मार्ग नही था। भीमसेन ने मार्ग में लेटे हुए वृद्व वानर से कहा कि तुम अपनी पूंछ को रास्ते से हटाकर एक ओर कर लो तो वानर ने कहां कि मै वृद्व अवस्था में हूं। आप इसके ऊपर से चले जाएं, भीम ने कहा कि मैं इसे लांघकर नहीं जा सकता, आप पूंछ हटाएं। इस पर वानर ने कहा कि आप बलशाली दिखते हैं, आप स्वयं ही मेरी पूंछ को हटा लें। भीमसेन ने वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की तो पूंछ भीमसेन से टस से मस भी ना हो सकी। भीमसेन की बार बार कोशिश करने के पश्चात भी भीमसेन वृद्ध वानर की पूंछ को नही हटा पाए और समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नही है ।
भीमसेन ने हाथ जोड़ कर वृद्ध वानर को अपने वास्तविक रूप प्रकट करने की विनती की । इस पर वृद्ध वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया । भीमसेन ने सभी पांडव को वहां बुला कर वृद्ध वानर की लेटे हुए रूप में ही पूजा अर्चना की। इसके बाद पांडवों ने वहां हनुमान मंदिर की स्थापना की जो आज पांडुपोल हनुमान मंदिर नाम से मशहूर है। अब हर मंगलवार व शनिवार को यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र है।