इस तोप से निकले गोले ने धरती को फाड़कर बना दिया था तालाब, नाम से ही कांप जाते थे
नई दिल्ली। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश का इतिहास जितना शक्तिशाली है, उतना ही समृद्ध हमारे देश के राजा-महाराजाओं की गौरव-गाथा भी है। आज हम आपको राजा सिंह द्वारा बनाए गए जयगढ़ के किले की एक बेहद ही खास चीज़ से रूबरू कराने जा रहे हैं। दरअसल आज हम आपको जयबाण तोप के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इस किले के डूंगर दरवाजे पर रखा हुआ है। इस तोप की कुल लंबाई करीब 32 फीट है। जयबाण तोप के बारे में कहा जाता है कि यह एशिया का सबसे बड़ी तोप है।
50 टन वज़नी यह तोप 35 किलोमीटर की दूरी पर खड़े अपने दुश्मनों के चीथड़े-चीथड़े करने में माहिर थी। जयबाण तोप की शक्ति का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इससे एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर खर्च हो जाता था। जयबाण तोप के बारे में चाकसू का किस्सा सबसे यादगार है। जयपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित इस कस्बे में जयबाण तोप से निकला एक गोला आ गिरा था। जिस जगह पर वह गोला गिरा था, वहां इतना बड़ा गड्ढा हो गया कि एक तालाब बन गया था।
इस तोप में इस्तेमाल किए जाने वाले गोले बनाने के लिए भी एक खास तरह का उपकरण इस्तेमाल किया जाता था। जयबाण में इतनी जगह है कि उसमें 8 मीटर लंबे बैरल भी आसानी से रखे जा सकते थे। जयबाण के बारे में इतिहासकारों का कहना है कि असाधारण वज़न होने की वजह से ये कभी किले से बाहर नहीं निकल पाया। इतना ही नहीं इसका इस्तेमाल कभी भी किसी युद्ध में नहीं किया गया था। जयगढ़ किले में मौजूद जयबाण तोप के बारे में आपको वहां सभी जानकारियां मिल जाएगी। अरावली की पहाड़ियों में बसा देश का एतिहासिक जयगढ़ किला साल 1726 में बना था। यह किला बाहर से देखने में जितना शानदार है, अंदर से इसका नज़ारा उतना ही ज़बरदस्त है।
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