Monday, 19 April 2021

ghost real book

आज हम आपको एक ऐसी किताब के बारे में बताने वाले हैं जो शैतान द्वारा लिखीं गई है और वो भी सिर्फ एक रात में!! जानकर चौंक गए ना, तो आइये दोस्तों अब हम जानते हैं, इसके पीछे का रहस्य। आज में जिस किताब की बात करने वाला हूं उस किताब का नाम है “कोडेक्स गिगास”.जिसे शैतान की बाइबल भी कहा जाता है। Codex Gigas के रहस्य को जानकर खुद वैज्ञानिक भी हैरान हैं।इस किताब को 13 वी शताब्दी में बोहेमिया में बनाया गया था। इस किताब की खास बात यह है कि ये किताब 160 प्रकार के चमड़े के उपर लिखीं गई है। आखिर ये कैसे मुमकिन है? ये करना इंसान के बस की बात नहीं है। और वो भी उस वक्त जब कोई प्रसाधन नहीं थे। ये किताब देखने भी काफ़ी बड़ी है। कोडेक्स गिगास का वजन करीब 74.8 किलोग्राम हैं। इसे उठाने के लिए कम से कम दो लोगों की जरूर पडती है।

Codex Gigas devil.jpg
Codex Gigas facsimile.jpg


1877 में Codex Gigas को स्टोकहोम स्वीडन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में संग्रहित किया ग या है। इसे दुनिया में सबसे बड़ा मौजूदा मध्ययुगीन प्रकाशित पांडुलिपि, 92 सेमी की लंबाई में है।  शैतान के बहुत ही असामान्य पूर्ण-पृष्ठ चित्र और इसकी रचना के कारण इसे बेहद ही अजीब माना जाता है। 16 वीं शताब्दी के अंत में, कोडेक्स को हैब्सबर्ग शासक रूडोल्फ II के संग्रह में शामिल किया गया था।  तीस साल के युद्ध (1648) के अंत में प्राग के स्वीडिश घेराबंदी के दौरान, पांडुलिपि को युद्ध लूट के रूप में लिया गया और स्टॉकहोम में स्थानांतरित कर दिया गया।

 किताब को किसने लिखा था? और क्यों?

पौराणिक कथा के अनुसार इस पांडुलिपि को शैतान के साथ ऐक समझोते से बनाई गई थीं। 

हुआ यूं था कि हरमन द रिक्ल्यूज नामक एक भिक्षु को इसे बनाने का आदेश दिया गया है। क्योंकि मठ वालों ने मठ की प्रतिज्ञा को तोडने के लिए हरमन को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन उसने कहा कि मुझसे गलती हो गई और इतनी बड़ी सजा तुम नहीं दे सकते। तो मठाधीशों ने ये फैसला किया कि इसे पांडुलिपि की किताब लिखने को दी जाए और वो भी एक ही दिन में। लेकिन एक दिन में पूरी किताब लिखना असंभव है। और मठवालों ने ये भी कहा कि अगर भिक्षु ये नहीं कर पाता तो उसे मौत की सजा मिलेगी।

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निराश होकर भिक्षु ने शैतान का आह्वान किया और शैतान को बुलाया। शैतान जब प्रगट हुआ तो उसने कहा कि क्या चाहीये बोलों, तुम्हारी जो भी इच्छा होगी वो में पूरी करुंगा लेकिन बदले में मुझे तुम्हारी आत्मा चाहिए। भिक्षु ने हाँ कहकर शैतान से समझोता कर लिया। फिर उसके बाद उसी रात में शैतान ने पूरी किताब जानवर के खाल से बने पतों पर लिख दी। उसके बाद सुबह भिक्षु ने उस किताब को मठवालों को दे दी। वो लोग समज नहीं पाए कि कैसे भिक्षु ने एक ही रात में ये किताब लिख दी। लेकिन उस दिन के बाद भिक्षु को सजा से मुक्ति मिल गई। इस किताब में शैतान के कई चित्रों को चित्रित किया गया है। इस किताब में भूत प्रेत, जादू के मंत्र,बोहेमियन लोगों की सूची और वहां के संतो द्वारा दिए गए सूचन लिखें गयें है।

यह 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में बोहेमिया में पोदलाज़िस के बेनेडिक्टिन मठ में बनाया गया था, जो आधुनिक चेक गणराज्य में एक क्षेत्र है। इसमें पूरा वुलगेट बाइबिल और अन्य लोकप्रिय रचनाएँ शामिल हैं, जो सभी लैटिन में लिखी गई हैं। ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट्स के बीच अन्य लोकप्रिय मध्ययुगीन संदर्भ कार्यों का चयन होता है: जोसेफस की एंटीक्विटीज ऑफ द यहूदियों और डी बेलो आयोडिको, सेविले के एन्साइक्लोपीडिया ईटमोलोगिया के कोसिड, कोस्मस ऑफ प्राग, और चिकित्सा कार्य; ये अर्स मेडिसिन के ग्रंथों का एक प्रारंभिक संस्करण हैं, और कॉन्स्टेंटाइन द अफ्रीकन की दो पुस्तकें हैं।

अंततः प्राग में रुडोल्फ II की शाही लाइब्रेरी के लिए अपना रास्ता तलाशते हुए, पूरे संग्रह को तीस साल के युद्ध के दौरान 1648 में स्वीडिश द्वारा युद्ध की लूट के रूप में लिया गया था, और पांडुलिपि अब स्टॉकहोम में स्वीडन के नेशनल लाइब्रेरी में संरक्षित है। यह आम जनता के लिए प्रदर्शन पर है।

बहुत बड़े प्रबुद्ध बाईबिल रोमनस्क्यू मठवासी पुस्तक उत्पादन की एक विशिष्ट विशेषता थे, लेकिन इस समूह के भीतर भी कोडेक्स गिगास का पृष्ठ-आकार असाधारण है।

rajasthan

भूत के खौफ से रुक गया था इस किले का काम, खास रानियों के लिए बने थे कमरे

आत्मा ने रोका था किले का काम...
- कहा जाता है कि किले के निर्माण के दौरान अजीब घटनाएं सामने आ रहीं थी। हर दूसरे दिन मजदूरों को अपना काम बिगड़ा हुआ मिलता था।
- इसके बाद पता करने पर जानकारी मिली कि य़ह जगह राठौर राजा नाहर सिंह भोमिया की थी। लोगों का मानना था कि उनकी आत्मा की वजह से निर्माण में इस तरह की दिक्कतें सामने आ रही थी।
- जिसके बाद सवाई राजा मान सिंह ने पास के पुराना घाट पर उनके लिए एक छोटा सा महल बनवाया। नाहर सिंह की आत्मा को जगह मिलने के बाद महल के निर्माण में कभी भी गड़बड़ी नहीं आई।
- इस किले का पहले नाम सुदर्शनगढ़ था, लेकिन राठौर राजा नाहर सिंह भोमिया की आत्मा का किस्सा आने के बाद इसका नाम बदलकर नाहरगढ़ कर दिया गया।

अकबर के नौ रत्नों में एक ने बनवाया था ये महल

- अकबर के नौरत्नों में से एक रहे महाराजा मान सिंह ने नाहरगढ़ किले का निर्माण करवाया था। महाराजा मान सिंह ने ही जयपुर की स्थापना भी की थी। सन् 1734 ईसवीं में इस किले का निर्माण करवाया गया।
- अरावली की पहाड़ियों पर बना यह किला आमेर और जयगढ़ किले के साथ मिलकर जयपुर शहर को सुरक्षा देने के हिसाब से बनवाया गया था। इस किले में आमिर खान से लेकर सुशांत सिंह राजपूत की फिल्में शूट हो चुकी हैं।

रानियों के लिए करवाया था शाही भवनों का निर्माण

- राजा मान सिंह की कई रानियां थी, यही वजह थी कि उन्होंने सभी रानियों के लिए शाही कमरे बनवाए थे।
- इसके लिए खास तौर पर आर्किटेक्ट को निर्देश दिए गए थे। इसे बनाने का श्रेय जयधर भट्टाचार्य को जाता है जिन्होंने रानियों ने के भवन का निर्माण किया था।
- रानियों के लिए मानवेन्द्र भवन में एक जैसे कई शाही कमरे बनवाए गए थे। जिनमें टॉयलेट से लेकर किचन तक ही व्यवस्था दी गई थी।

जानवरों का खतरा

इस किले के पीछे काफी बड़ा जंगल है। बताया जाता है कि राजा मानसिंह जंगल का इस्तेमाल शिकार के लिए करते थे। आज भी यहां कई जंगली जानवर मौजूद हैं। यही कारण है कि यहां पर्यटकों को दिन में भी महल या केसर क्यारी(किले का हिस्सा) के आस-पास नहीं घूमने देते।

Delhi horror story

दिल्ली में है एक भूतिया पेड़! पेड़ पर भूत रहते हैं और इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी ने खुद माना कि यहाँ कुछ 

Ghost Living On Tree In Delhi

आज हम विज्ञान के दौर में बेशक जी रहे हैं लेकिन कुछ बातें ऐसी जरुर हैं जिन्हें विज्ञान भी हल नहीं कर पाया है.

भूत-प्रेत की दुनिया का राज आज भी यह नहीं हल कर पाया है. विज्ञान कहता है कि यह कुछ लोगों का मात्र भ्रम है लेकिन इंसान कहता है कि नहीं यह भ्रम नहीं है.

देश के दिल दिल्ली के द्वारका सेक्टर 9 में एक ऐसी ही जगह है जहाँ पर भूतों का साया बताया जाता है.

अक्सर रात को यहाँ से गुजरने वालों से एक औरत का साया लिफ्ट मांगता है. कुछ लोग बताते हैं कि उन्होंने उस महिला को लिफ्ट दी भी है और वह थोड़ी दूर जाकर गायब हो जाती है. किन्तु अगर कोई उसको लिफ्ट नहीं देता है तो वह काफी देर तक उस गाड़ी का पीछा करती है.

कहाँ है यह जगह

दिल्ली के द्वारका में सेक्टर 9 मेट्रो स्टेशन के पास यह जगह है.

रास्ते पर दो पेड़ हैं जिन पर किसी आत्मा का वास बताया जाता है. यहाँ एक पेड़ पीपल का और दूसरा पेड़ नीम का है और दोनों ही पेड़ एक दूसरे से मिले हुए हैं. पेड़ के चारों ओर एक चबूतरे का निर्माण कर दिया गया है और उस पर ईश्वर की मूर्तियाँ भी रखी हुई हैं.

रात के समय बताया जाता है कि अक्सर यहाँ पर कुछ नजर आता है. जो या तो पेड़ पर बैठा होता है या फिर कई बार सड़क पर चलती गाड़ियों से लिफ्ट भी मांगता है. कुछ बाइक वाले दावा भी करते हैं कि उन्होंने उस साए तो लिफ्ट भी दी है और कुछ दूर जाकर वह खुद बाइक से गायब हो गयी थी.

जहाँ पर पेड़ है वहां एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है जिसके बाहर दो पहरेदार बैठे हुए हैं लेकिन मंदिर बंद ही रहता है. आप बेशक इस बात को मजाक में ले सकते हैं और आप बोल सकते हैं कि यह अंधविश्वास को बढ़ावा देना है लेकिन आप अगर यहाँ रात के 12 बजे जाते हैं तो आपको यहाँ जरूर कुछ नकारात्मक शक्ति का आभास होगा.

हुआ था एक हादसा और तब

कहते हैं कि काफी पहले यहाँ एक हादसा हुआ था.

एक माँ अपने बच्चे के साथ इस रास्ते से गुजर रही थी तो दोनों को एक कार ने दुर्घटना में घायल कर दिया था. तब माँ ने रास्ते से गुजरते हुए लोगों से मदद मांगी थी और किसी ने भी तब उस महिला की मदद नहीं की थी. इस हादसे में तब दोनों की मृत्यु हो गयी थी. तबसे उस महिला का साया यहाँ बताया जाता है और वह यहाँ से गुजरते लोगों से मदद मांगती रहती है.

इस कहानी को यहाँ के निवासी लोग बताते हैं. यह लोग कहते हैं कि काफी सारे अख़बारों ने इस बात को छापा तब छापा था.

इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी जब यहाँ आई

रात के समय जब इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी यहाँ आई थी तब वह खुद बताती है कि यहाँ पर कुछ अजीब जरूर लगा था. कुछ फोटोज में परछाई नजर आ रही थी. इन्होनें जब रास्ते पर राख डाली तो कुछ पैरों के निशान भी इन लोगों को नजर आए थे. साथ ही साथ यहाँ की हवा भी कुछ ज्यादा ही अजीब लगी थी.

तो अब आप अगर कभी इस रास्ते से निकलें तो ध्यान जरूर रखें और अगर आपको कुछ नजर आये तो उसको नजरअंदाज करने की कोशिश तो बिल्कुल भी ना करें.

real god in rajasthan

करणी माता का मन्दिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है जो राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है। इसमें देवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से ३० किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है। करणी माता का जन्म चारण कुल में हुआ यह मन्दिर चूहों का मन्दिर भी कहलाया जाता है। मन्दिर मुख्यतः काले चूहों के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र मन्दिर में लगभग २०००० काले चूहे रहते हैं। [1][2] [2] मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।

करणी माता मन्दिर

करणी माता मन्दिर





नाम
अन्य नाम:करणी माँ का मन्दिर
मुख्य नाम:करणी माता मन्दिर
देवनागरी:करणी माता मंदिर
स्थान
देश: भारत,
राज्य:राजस्थान
जिला:बीकानेर
स्थिति:देशनोक
स्थापत्य शैली एवं संस्कृति
स्थापत्य शैलियाँ:मुगल वास्तुकला और राजपूती
इतिहास
निर्माण तिथि:१५वीं - २०वीं शताब्दी
सृजनकर्त्ता:महाराजा गंगा सिंह

श्रद्धालुओं का मत है कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।

संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचते ही चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह जाता है। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं।

चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।

कथा के अनुसारसंपादित करें

करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है।

करणी जी का अवतरण चारण कुल में वि. सं. १४४४ अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार तदनुसार २० सितम्बर, १३८७ ई. को सुआप (जोधपुर) में मेहाजी किनिया के घर में हुआ था। करणीजी ने जनहितार्थ अवतार लेकर तत्कालीन जांगल प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया। करणीजी ने ही राव बीका को जांगल प्रदेश में राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया था। करणी माता ने मानव मात्र एवं पशु-पक्षियों के संवर्द्धन के लिए देशनोक में दस हजार बीघा 'ओरण' (पशुओं की चराई का स्थान) की स्थापना की थी। करणी माता ने पूगल के राव शेखा को मुल्तान (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) के कारागृह से मुक्त करवा कर उसकी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका से संपन्न करवाया था। करणीजी की गायों का चरवाहा दशरथ मेघवाल था। डाकू पेंथड़ और पूजा महला से गायों की रक्षार्थ जूझ कर दशरथ मेघवाल ने अपने प्राण गवां दिए थे। करणी माता ने डाकू पेंथड़ व पूजा महला का अंत कर दशरथ मेघवाल को पूज्य बनाया जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है ।[1]

वास्तुकलासंपादित करें

इस मन्दिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने [[राजपूती[[ और मुगली शैली में लगभग १५-२०वीं सदी में करवाया था। मन्दिर के सामने महाराजा गंगा सिंह ने चांदी के दरवाजे भी बनाए थे। देवी की छवि अंदरूनी गर्भगृह में निहित है। मन्दिर में १९९९ में हैदराबाद के कुंदन लाल वर्मा ने भी कुछ मन्दिर का विस्तार किया था।

आवागमनसंपादित करें

मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही है यह मंदिर। वर्ष में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता है। तब भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं भी हैं।

evil fort in rajasthan

Bhangarh :- 'भूतों का गढ़' कहलाता है राजस्थान का ये गांव, शाम ढलने के बाद हो जाती है लोगों की आवजाही बंद

अलवर।

राजस्थान के जयपुर जिले से करीब 80 किलोमीटर दूर अलवर जिले में स्थित भानगढ़ का किला (Bhangarh Fort) लोगों के लिए हमेशा से कोतूहल का विषय (Story Of Bhangarh) रहा है। इस किले से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही सरिस्का नेशनल पार्क स्थित है।

 

किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक्काशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा किला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा।

 

भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। पुरातत्व विभाग ने यहां आने बाले पर्यटकों को सख्त हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में कोई भी व्यक्ति नहीं रुके।

 

ये है किले का इतिहास (Bhangarh Fort Story In Hindi)

भानगढ़ की कहानी रहस्यमयी और बड़ी ही रोचक है। 1573 में आमेर के राजा भगवंत दास ने भानगढ़ क़िले का निर्माण करवाया था। किला बसावट के 300 सालों बाद तक आबाद रहा। 16वीं शताब्दी में राजा सवाई मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने भानगढ़ किले को अपना निवास बना लिया।

 

एक श्राप के कारण बना 'भूतों का भानगढ़'

कहते हैं कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत खुबसूरत थी। उस समय राजकुमारी खूबसूरती की चर्चा पूरे राज्य में थी। कई राज्यों से रत्नावती के लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकली। बाजार में वह एक इत्र की दुकान पर पहुंची और इत्र को हाथ में लेकर उसकी खूशबू सूंघ रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ दूरी सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा हो कर राजकुमारी को निहार रहा था। सिंघीया उसी राज्य का रहने वाला था और वह काले जादू में महारथी था।

 

कथित रूप से राजकुमारी के रूप को देख तांत्रिक मोहित हो गया था और राजकुमारी से प्रेम करने लग गया और राजकुमारी को हासिल करने के बारे में सोचने लगा। लेकिन रत्नावती ने कभी उसे पलटकर नहीं देखा।

 

जिस दुकान से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था उसने उस दुकान में जाकर रत्नावती को भेजे जाने वाली इस की बोतल पर काला जादू कर उस पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया। जब राजकुमारी को सच्चाई पता चल गई, तो उसने इत्र की शीशी पास ही एक पत्थर फेंक दी। इससे शीशी टूट गई और इत्र बिखर गया।

 

काला जादू होने के कारण पत्थर सिंधु सेवड़ा के पीछे हो लिया और उसे कुचल डाला। सिंधु सेवड़ा तो मर गया, लेकिन मरने से पहले उस तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे और दुबारा जन्म नहीं लेंगे। उनकी आत्मा इस किले में ही भटकती रहेंगी। आज 21वीं सदी में भी लोगों में इस बात को लेकर भय है कि भानगढ़ में भूतों का निवास है।

 

सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को खुदाई के बाद सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रहा था। अब किला भारत सरकार की देख रेख में आता है। किले के चारों तरफ आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती है। एएसआई ने सूर्यास्त बाद किसी के भी यहां रुकने को प्रतिबंधित कर रखा है।

Sunday, 18 April 2021

ghost book

आज हम आपको एक ऐसी किताब के बारे में बताने वाले हैं जो शैतान द्वारा लिखीं गई है और वो भी सिर्फ एक रात में!! जानकर चौंक गए ना, तो आइये दोस्तों अब हम जानते हैं, इसके पीछे का रहस्य। आज में जिस किताब की बात करने वाला हूं उस किताब का नाम है “कोडेक्स गिगास”.जिसे शैतान की बाइबल भी कहा जाता है। Codex Gigas के रहस्य को जानकर खुद वैज्ञानिक भी हैरान हैं।इस किताब को 13 वी शताब्दी में बोहेमिया में बनाया गया था। इस किताब की खास बात यह है कि ये किताब 160 प्रकार के चमड़े के उपर लिखीं गई है। आखिर ये कैसे मुमकिन है? ये करना इंसान के बस की बात नहीं है। और वो भी उस वक्त जब कोई प्रसाधन नहीं थे। ये किताब देखने भी काफ़ी बड़ी है। कोडेक्स गिगास का वजन करीब 74.8 किलोग्राम हैं। इसे उठाने के लिए कम से कम दो लोगों की जरूर पडती है।

Codex Gigas devil.jpg
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1877 में Codex Gigas को स्टोकहोम स्वीडन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में संग्रहित किया ग या है। इसे दुनिया में सबसे बड़ा मौजूदा मध्ययुगीन प्रकाशित पांडुलिपि, 92 सेमी की लंबाई में है।  शैतान के बहुत ही असामान्य पूर्ण-पृष्ठ चित्र और इसकी रचना के कारण इसे बेहद ही अजीब माना जाता है। 16 वीं शताब्दी के अंत में, कोडेक्स को हैब्सबर्ग शासक रूडोल्फ II के संग्रह में शामिल किया गया था।  तीस साल के युद्ध (1648) के अंत में प्राग के स्वीडिश घेराबंदी के दौरान, पांडुलिपि को युद्ध लूट के रूप में लिया गया और स्टॉकहोम में स्थानांतरित कर दिया गया।

 किताब को किसने लिखा था? और क्यों?

पौराणिक कथा के अनुसार इस पांडुलिपि को शैतान के साथ ऐक समझोते से बनाई गई थीं। 

हुआ यूं था कि हरमन द रिक्ल्यूज नामक एक भिक्षु को इसे बनाने का आदेश दिया गया है। क्योंकि मठ वालों ने मठ की प्रतिज्ञा को तोडने के लिए हरमन को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन उसने कहा कि मुझसे गलती हो गई और इतनी बड़ी सजा तुम नहीं दे सकते। तो मठाधीशों ने ये फैसला किया कि इसे पांडुलिपि की किताब लिखने को दी जाए और वो भी एक ही दिन में। लेकिन एक दिन में पूरी किताब लिखना असंभव है। और मठवालों ने ये भी कहा कि अगर भिक्षु ये नहीं कर पाता तो उसे मौत की सजा मिलेगी।

Devil codex Gigas.jpg


निराश होकर भिक्षु ने शैतान का आह्वान किया और शैतान को बुलाया। शैतान जब प्रगट हुआ तो उसने कहा कि क्या चाहीये बोलों, तुम्हारी जो भी इच्छा होगी वो में पूरी करुंगा लेकिन बदले में मुझे तुम्हारी आत्मा चाहिए। भिक्षु ने हाँ कहकर शैतान से समझोता कर लिया। फिर उसके बाद उसी रात में शैतान ने पूरी किताब जानवर के खाल से बने पतों पर लिख दी। उसके बाद सुबह भिक्षु ने उस किताब को मठवालों को दे दी। वो लोग समज नहीं पाए कि कैसे भिक्षु ने एक ही रात में ये किताब लिख दी। लेकिन उस दिन के बाद भिक्षु को सजा से मुक्ति मिल गई। इस किताब में शैतान के कई चित्रों को चित्रित किया गया है। इस किताब में भूत प्रेत, जादू के मंत्र,बोहेमियन लोगों की सूची और वहां के संतो द्वारा दिए गए सूचन लिखें गयें है।

यह 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में बोहेमिया में पोदलाज़िस के बेनेडिक्टिन मठ में बनाया गया था, जो आधुनिक चेक गणराज्य में एक क्षेत्र है। इसमें पूरा वुलगेट बाइबिल और अन्य लोकप्रिय रचनाएँ शामिल हैं, जो सभी लैटिन में लिखी गई हैं। ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट्स के बीच अन्य लोकप्रिय मध्ययुगीन संदर्भ कार्यों का चयन होता है: जोसेफस की एंटीक्विटीज ऑफ द यहूदियों और डी बेलो आयोडिको, सेविले के एन्साइक्लोपीडिया ईटमोलोगिया के कोसिड, कोस्मस ऑफ प्राग, और चिकित्सा कार्य; ये अर्स मेडिसिन के ग्रंथों का एक प्रारंभिक संस्करण हैं, और कॉन्स्टेंटाइन द अफ्रीकन की दो पुस्तकें हैं।

अंततः प्राग में रुडोल्फ II की शाही लाइब्रेरी के लिए अपना रास्ता तलाशते हुए, पूरे संग्रह को तीस साल के युद्ध के दौरान 1648 में स्वीडिश द्वारा युद्ध की लूट के रूप में लिया गया था, और पांडुलिपि अब स्टॉकहोम में स्वीडन के नेशनल लाइब्रेरी में संरक्षित है। यह आम जनता के लिए प्रदर्शन पर है।

बहुत बड़े प्रबुद्ध बाईबिल रोमनस्क्यू मठवासी पुस्तक उत्पादन की एक विशिष्ट विशेषता थे, लेकिन इस समूह के भीतर भी कोडेक्स गिगास का पृष्ठ-आकार असाधारण है।

story of prithvi raj chauhan

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान'


ये दोहा चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने के लिए कहा था. जैसे ही इस दोहे को सुनकर मोहम्मद गोरी ने 'शाब्बास' बोला. वैसे हीं अपनी दोनों आंखों से अंधे हो चुके पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा मार डाला.

वहीं दुखद ये हुआ कि जैसे ही मोहम्मद गोरी मारा गया उसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने अपनी दुर्गति से बचने की खातिर एक-दूसरे की हत्या कर दी.  इस तरह पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया. वहीं जब पृथ्वीराज के मरने की खबर  संयोगिता ने सुनी तो उसने भी अपने प्राण ले लिए. अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी क्षेत्र में पृथ्वीराज चौहान की समाधि आज भी  है, अफगानिस्तान में 800 साल से राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान की समाधि को शैतान बताकर और उस पर जूते मारकर अपमानित करते थे, जिसके बाद भारत सरकार ने उनकी अस्थियां भारत मंगवाने का फैसला किया था.

बता दें, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लोगों की नजरों में मोहम्मद गोरी हीरो बना हुआ है. जबकि पृथ्वीराज चौहान को अपना दुश्मन मानते हैं. चुकी पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की हत्या की थी. यही वजह है कि पृथ्वीराज चौहान की समाधी को वे लोग तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं.