Monday, 19 April 2021

ghost real book

आज हम आपको एक ऐसी किताब के बारे में बताने वाले हैं जो शैतान द्वारा लिखीं गई है और वो भी सिर्फ एक रात में!! जानकर चौंक गए ना, तो आइये दोस्तों अब हम जानते हैं, इसके पीछे का रहस्य। आज में जिस किताब की बात करने वाला हूं उस किताब का नाम है “कोडेक्स गिगास”.जिसे शैतान की बाइबल भी कहा जाता है। Codex Gigas के रहस्य को जानकर खुद वैज्ञानिक भी हैरान हैं।इस किताब को 13 वी शताब्दी में बोहेमिया में बनाया गया था। इस किताब की खास बात यह है कि ये किताब 160 प्रकार के चमड़े के उपर लिखीं गई है। आखिर ये कैसे मुमकिन है? ये करना इंसान के बस की बात नहीं है। और वो भी उस वक्त जब कोई प्रसाधन नहीं थे। ये किताब देखने भी काफ़ी बड़ी है। कोडेक्स गिगास का वजन करीब 74.8 किलोग्राम हैं। इसे उठाने के लिए कम से कम दो लोगों की जरूर पडती है।

Codex Gigas devil.jpg
Codex Gigas facsimile.jpg


1877 में Codex Gigas को स्टोकहोम स्वीडन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में संग्रहित किया ग या है। इसे दुनिया में सबसे बड़ा मौजूदा मध्ययुगीन प्रकाशित पांडुलिपि, 92 सेमी की लंबाई में है।  शैतान के बहुत ही असामान्य पूर्ण-पृष्ठ चित्र और इसकी रचना के कारण इसे बेहद ही अजीब माना जाता है। 16 वीं शताब्दी के अंत में, कोडेक्स को हैब्सबर्ग शासक रूडोल्फ II के संग्रह में शामिल किया गया था।  तीस साल के युद्ध (1648) के अंत में प्राग के स्वीडिश घेराबंदी के दौरान, पांडुलिपि को युद्ध लूट के रूप में लिया गया और स्टॉकहोम में स्थानांतरित कर दिया गया।

 किताब को किसने लिखा था? और क्यों?

पौराणिक कथा के अनुसार इस पांडुलिपि को शैतान के साथ ऐक समझोते से बनाई गई थीं। 

हुआ यूं था कि हरमन द रिक्ल्यूज नामक एक भिक्षु को इसे बनाने का आदेश दिया गया है। क्योंकि मठ वालों ने मठ की प्रतिज्ञा को तोडने के लिए हरमन को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन उसने कहा कि मुझसे गलती हो गई और इतनी बड़ी सजा तुम नहीं दे सकते। तो मठाधीशों ने ये फैसला किया कि इसे पांडुलिपि की किताब लिखने को दी जाए और वो भी एक ही दिन में। लेकिन एक दिन में पूरी किताब लिखना असंभव है। और मठवालों ने ये भी कहा कि अगर भिक्षु ये नहीं कर पाता तो उसे मौत की सजा मिलेगी।

Devil codex Gigas.jpg


निराश होकर भिक्षु ने शैतान का आह्वान किया और शैतान को बुलाया। शैतान जब प्रगट हुआ तो उसने कहा कि क्या चाहीये बोलों, तुम्हारी जो भी इच्छा होगी वो में पूरी करुंगा लेकिन बदले में मुझे तुम्हारी आत्मा चाहिए। भिक्षु ने हाँ कहकर शैतान से समझोता कर लिया। फिर उसके बाद उसी रात में शैतान ने पूरी किताब जानवर के खाल से बने पतों पर लिख दी। उसके बाद सुबह भिक्षु ने उस किताब को मठवालों को दे दी। वो लोग समज नहीं पाए कि कैसे भिक्षु ने एक ही रात में ये किताब लिख दी। लेकिन उस दिन के बाद भिक्षु को सजा से मुक्ति मिल गई। इस किताब में शैतान के कई चित्रों को चित्रित किया गया है। इस किताब में भूत प्रेत, जादू के मंत्र,बोहेमियन लोगों की सूची और वहां के संतो द्वारा दिए गए सूचन लिखें गयें है।

यह 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में बोहेमिया में पोदलाज़िस के बेनेडिक्टिन मठ में बनाया गया था, जो आधुनिक चेक गणराज्य में एक क्षेत्र है। इसमें पूरा वुलगेट बाइबिल और अन्य लोकप्रिय रचनाएँ शामिल हैं, जो सभी लैटिन में लिखी गई हैं। ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट्स के बीच अन्य लोकप्रिय मध्ययुगीन संदर्भ कार्यों का चयन होता है: जोसेफस की एंटीक्विटीज ऑफ द यहूदियों और डी बेलो आयोडिको, सेविले के एन्साइक्लोपीडिया ईटमोलोगिया के कोसिड, कोस्मस ऑफ प्राग, और चिकित्सा कार्य; ये अर्स मेडिसिन के ग्रंथों का एक प्रारंभिक संस्करण हैं, और कॉन्स्टेंटाइन द अफ्रीकन की दो पुस्तकें हैं।

अंततः प्राग में रुडोल्फ II की शाही लाइब्रेरी के लिए अपना रास्ता तलाशते हुए, पूरे संग्रह को तीस साल के युद्ध के दौरान 1648 में स्वीडिश द्वारा युद्ध की लूट के रूप में लिया गया था, और पांडुलिपि अब स्टॉकहोम में स्वीडन के नेशनल लाइब्रेरी में संरक्षित है। यह आम जनता के लिए प्रदर्शन पर है।

बहुत बड़े प्रबुद्ध बाईबिल रोमनस्क्यू मठवासी पुस्तक उत्पादन की एक विशिष्ट विशेषता थे, लेकिन इस समूह के भीतर भी कोडेक्स गिगास का पृष्ठ-आकार असाधारण है।

rajasthan

भूत के खौफ से रुक गया था इस किले का काम, खास रानियों के लिए बने थे कमरे

आत्मा ने रोका था किले का काम...
- कहा जाता है कि किले के निर्माण के दौरान अजीब घटनाएं सामने आ रहीं थी। हर दूसरे दिन मजदूरों को अपना काम बिगड़ा हुआ मिलता था।
- इसके बाद पता करने पर जानकारी मिली कि य़ह जगह राठौर राजा नाहर सिंह भोमिया की थी। लोगों का मानना था कि उनकी आत्मा की वजह से निर्माण में इस तरह की दिक्कतें सामने आ रही थी।
- जिसके बाद सवाई राजा मान सिंह ने पास के पुराना घाट पर उनके लिए एक छोटा सा महल बनवाया। नाहर सिंह की आत्मा को जगह मिलने के बाद महल के निर्माण में कभी भी गड़बड़ी नहीं आई।
- इस किले का पहले नाम सुदर्शनगढ़ था, लेकिन राठौर राजा नाहर सिंह भोमिया की आत्मा का किस्सा आने के बाद इसका नाम बदलकर नाहरगढ़ कर दिया गया।

अकबर के नौ रत्नों में एक ने बनवाया था ये महल

- अकबर के नौरत्नों में से एक रहे महाराजा मान सिंह ने नाहरगढ़ किले का निर्माण करवाया था। महाराजा मान सिंह ने ही जयपुर की स्थापना भी की थी। सन् 1734 ईसवीं में इस किले का निर्माण करवाया गया।
- अरावली की पहाड़ियों पर बना यह किला आमेर और जयगढ़ किले के साथ मिलकर जयपुर शहर को सुरक्षा देने के हिसाब से बनवाया गया था। इस किले में आमिर खान से लेकर सुशांत सिंह राजपूत की फिल्में शूट हो चुकी हैं।

रानियों के लिए करवाया था शाही भवनों का निर्माण

- राजा मान सिंह की कई रानियां थी, यही वजह थी कि उन्होंने सभी रानियों के लिए शाही कमरे बनवाए थे।
- इसके लिए खास तौर पर आर्किटेक्ट को निर्देश दिए गए थे। इसे बनाने का श्रेय जयधर भट्टाचार्य को जाता है जिन्होंने रानियों ने के भवन का निर्माण किया था।
- रानियों के लिए मानवेन्द्र भवन में एक जैसे कई शाही कमरे बनवाए गए थे। जिनमें टॉयलेट से लेकर किचन तक ही व्यवस्था दी गई थी।

जानवरों का खतरा

इस किले के पीछे काफी बड़ा जंगल है। बताया जाता है कि राजा मानसिंह जंगल का इस्तेमाल शिकार के लिए करते थे। आज भी यहां कई जंगली जानवर मौजूद हैं। यही कारण है कि यहां पर्यटकों को दिन में भी महल या केसर क्यारी(किले का हिस्सा) के आस-पास नहीं घूमने देते।

Delhi horror story

दिल्ली में है एक भूतिया पेड़! पेड़ पर भूत रहते हैं और इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी ने खुद माना कि यहाँ कुछ 

Ghost Living On Tree In Delhi

आज हम विज्ञान के दौर में बेशक जी रहे हैं लेकिन कुछ बातें ऐसी जरुर हैं जिन्हें विज्ञान भी हल नहीं कर पाया है.

भूत-प्रेत की दुनिया का राज आज भी यह नहीं हल कर पाया है. विज्ञान कहता है कि यह कुछ लोगों का मात्र भ्रम है लेकिन इंसान कहता है कि नहीं यह भ्रम नहीं है.

देश के दिल दिल्ली के द्वारका सेक्टर 9 में एक ऐसी ही जगह है जहाँ पर भूतों का साया बताया जाता है.

अक्सर रात को यहाँ से गुजरने वालों से एक औरत का साया लिफ्ट मांगता है. कुछ लोग बताते हैं कि उन्होंने उस महिला को लिफ्ट दी भी है और वह थोड़ी दूर जाकर गायब हो जाती है. किन्तु अगर कोई उसको लिफ्ट नहीं देता है तो वह काफी देर तक उस गाड़ी का पीछा करती है.

कहाँ है यह जगह

दिल्ली के द्वारका में सेक्टर 9 मेट्रो स्टेशन के पास यह जगह है.

रास्ते पर दो पेड़ हैं जिन पर किसी आत्मा का वास बताया जाता है. यहाँ एक पेड़ पीपल का और दूसरा पेड़ नीम का है और दोनों ही पेड़ एक दूसरे से मिले हुए हैं. पेड़ के चारों ओर एक चबूतरे का निर्माण कर दिया गया है और उस पर ईश्वर की मूर्तियाँ भी रखी हुई हैं.

रात के समय बताया जाता है कि अक्सर यहाँ पर कुछ नजर आता है. जो या तो पेड़ पर बैठा होता है या फिर कई बार सड़क पर चलती गाड़ियों से लिफ्ट भी मांगता है. कुछ बाइक वाले दावा भी करते हैं कि उन्होंने उस साए तो लिफ्ट भी दी है और कुछ दूर जाकर वह खुद बाइक से गायब हो गयी थी.

जहाँ पर पेड़ है वहां एक छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है जिसके बाहर दो पहरेदार बैठे हुए हैं लेकिन मंदिर बंद ही रहता है. आप बेशक इस बात को मजाक में ले सकते हैं और आप बोल सकते हैं कि यह अंधविश्वास को बढ़ावा देना है लेकिन आप अगर यहाँ रात के 12 बजे जाते हैं तो आपको यहाँ जरूर कुछ नकारात्मक शक्ति का आभास होगा.

हुआ था एक हादसा और तब

कहते हैं कि काफी पहले यहाँ एक हादसा हुआ था.

एक माँ अपने बच्चे के साथ इस रास्ते से गुजर रही थी तो दोनों को एक कार ने दुर्घटना में घायल कर दिया था. तब माँ ने रास्ते से गुजरते हुए लोगों से मदद मांगी थी और किसी ने भी तब उस महिला की मदद नहीं की थी. इस हादसे में तब दोनों की मृत्यु हो गयी थी. तबसे उस महिला का साया यहाँ बताया जाता है और वह यहाँ से गुजरते लोगों से मदद मांगती रहती है.

इस कहानी को यहाँ के निवासी लोग बताते हैं. यह लोग कहते हैं कि काफी सारे अख़बारों ने इस बात को छापा तब छापा था.

इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी जब यहाँ आई

रात के समय जब इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी यहाँ आई थी तब वह खुद बताती है कि यहाँ पर कुछ अजीब जरूर लगा था. कुछ फोटोज में परछाई नजर आ रही थी. इन्होनें जब रास्ते पर राख डाली तो कुछ पैरों के निशान भी इन लोगों को नजर आए थे. साथ ही साथ यहाँ की हवा भी कुछ ज्यादा ही अजीब लगी थी.

तो अब आप अगर कभी इस रास्ते से निकलें तो ध्यान जरूर रखें और अगर आपको कुछ नजर आये तो उसको नजरअंदाज करने की कोशिश तो बिल्कुल भी ना करें.

real god in rajasthan

करणी माता का मन्दिर एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है जो राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है। इसमें देवी करणी माता की मूर्ति स्थापित है। यह बीकानेर से ३० किलोमीटर दक्षिण दिशा में देशनोक में स्थित है। करणी माता का जन्म चारण कुल में हुआ यह मन्दिर चूहों का मन्दिर भी कहलाया जाता है। मन्दिर मुख्यतः काले चूहों के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र मन्दिर में लगभग २०००० काले चूहे रहते हैं। [1][2] [2] मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी को भी विशेष रूप से देखने के लिए लोग यहां आते हैं। चांदी के किवाड़, सोने के छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है।

करणी माता मन्दिर

करणी माता मन्दिर





नाम
अन्य नाम:करणी माँ का मन्दिर
मुख्य नाम:करणी माता मन्दिर
देवनागरी:करणी माता मंदिर
स्थान
देश: भारत,
राज्य:राजस्थान
जिला:बीकानेर
स्थिति:देशनोक
स्थापत्य शैली एवं संस्कृति
स्थापत्य शैलियाँ:मुगल वास्तुकला और राजपूती
इतिहास
निर्माण तिथि:१५वीं - २०वीं शताब्दी
सृजनकर्त्ता:महाराजा गंगा सिंह

श्रद्धालुओं का मत है कि करणी देवी साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। अब से लगभग साढ़े छह सौ वर्ष पूर्व जिस स्थान पर यह भव्य मंदिर है, वहां एक गुफा में रहकर मां अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। मां के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गई। बताते हैं कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।

संगमरमर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मुख्य दरवाजा पार कर मंदिर के अंदर पहुंचते ही चूहों की धमाचौकड़ी देख मन दंग रह जाता है। चूहों की बहुतायत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पैदल चलने के लिए अपना अगला कदम उठाकर नहीं, बल्कि जमीन पर घसीटते हुए आगे रखना होता है। लोग इसी तरह कदमों को घसीटते हुए करणी मां की मूर्ति के सामने पहुंचते हैं।

चूहे पूरे मंदिर प्रांगण में मौजूद रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर कूद-फांद करते हैं, लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही श्री करणी देवी का यह मंदिर चूहों वाले मंदिर के नाम से भी विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि किसी श्रद्धालु को यदि यहां सफेद चूहे के दर्शन होते हैं, तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे मंगला आरती और सायं सात बजे आरती के समय चूहों का जुलूस तो देखने लायक होता है।

कथा के अनुसारसंपादित करें

करणी मां की कथा एक सामान्य ग्रामीण कन्या की कथा है, लेकिन उनके संबंध में अनेक चमत्कारी घटनाएं भी जुड़ी बताई जाती हैं, जो उनकी उम्र के अलग-अलग पड़ाव से संबंध रखती हैं। बताते हैं कि संवत 1595 की चैत्र शुक्ल नवमी गुरुवार को श्री करणी ज्योर्तिलीन हुईं। संवत 1595 की चैत्र शुक्ला 14 से यहां श्री करणी माता जी की सेवा पूजा होती चली आ रही है।

करणी जी का अवतरण चारण कुल में वि. सं. १४४४ अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार तदनुसार २० सितम्बर, १३८७ ई. को सुआप (जोधपुर) में मेहाजी किनिया के घर में हुआ था। करणीजी ने जनहितार्थ अवतार लेकर तत्कालीन जांगल प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया। करणीजी ने ही राव बीका को जांगल प्रदेश में राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया था। करणी माता ने मानव मात्र एवं पशु-पक्षियों के संवर्द्धन के लिए देशनोक में दस हजार बीघा 'ओरण' (पशुओं की चराई का स्थान) की स्थापना की थी। करणी माता ने पूगल के राव शेखा को मुल्तान (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) के कारागृह से मुक्त करवा कर उसकी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका से संपन्न करवाया था। करणीजी की गायों का चरवाहा दशरथ मेघवाल था। डाकू पेंथड़ और पूजा महला से गायों की रक्षार्थ जूझ कर दशरथ मेघवाल ने अपने प्राण गवां दिए थे। करणी माता ने डाकू पेंथड़ व पूजा महला का अंत कर दशरथ मेघवाल को पूज्य बनाया जो सामाजिक समरसता का प्रतीक है ।[1]

वास्तुकलासंपादित करें

इस मन्दिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने [[राजपूती[[ और मुगली शैली में लगभग १५-२०वीं सदी में करवाया था। मन्दिर के सामने महाराजा गंगा सिंह ने चांदी के दरवाजे भी बनाए थे। देवी की छवि अंदरूनी गर्भगृह में निहित है। मन्दिर में १९९९ में हैदराबाद के कुंदन लाल वर्मा ने भी कुछ मन्दिर का विस्तार किया था।

आवागमनसंपादित करें

मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही है यह मंदिर। वर्ष में दो बार नवरात्रों पर चैत्र व आश्विन माह में इस मंदिर पर विशाल मेला भी लगता है। तब भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास धर्मशालाएं भी हैं।

evil fort in rajasthan

Bhangarh :- 'भूतों का गढ़' कहलाता है राजस्थान का ये गांव, शाम ढलने के बाद हो जाती है लोगों की आवजाही बंद

अलवर।

राजस्थान के जयपुर जिले से करीब 80 किलोमीटर दूर अलवर जिले में स्थित भानगढ़ का किला (Bhangarh Fort) लोगों के लिए हमेशा से कोतूहल का विषय (Story Of Bhangarh) रहा है। इस किले से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही सरिस्का नेशनल पार्क स्थित है।

 

किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक्काशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा किला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा।

 

भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। पुरातत्व विभाग ने यहां आने बाले पर्यटकों को सख्त हिदायत दे रखी है कि सूर्यास्त के बाद इस इलाके में कोई भी व्यक्ति नहीं रुके।

 

ये है किले का इतिहास (Bhangarh Fort Story In Hindi)

भानगढ़ की कहानी रहस्यमयी और बड़ी ही रोचक है। 1573 में आमेर के राजा भगवंत दास ने भानगढ़ क़िले का निर्माण करवाया था। किला बसावट के 300 सालों बाद तक आबाद रहा। 16वीं शताब्दी में राजा सवाई मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने भानगढ़ किले को अपना निवास बना लिया।

 

एक श्राप के कारण बना 'भूतों का भानगढ़'

कहते हैं कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बहुत खुबसूरत थी। उस समय राजकुमारी खूबसूरती की चर्चा पूरे राज्य में थी। कई राज्यों से रत्नावती के लिए विवाह के प्रस्ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकली। बाजार में वह एक इत्र की दुकान पर पहुंची और इत्र को हाथ में लेकर उसकी खूशबू सूंघ रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ दूरी सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा हो कर राजकुमारी को निहार रहा था। सिंघीया उसी राज्य का रहने वाला था और वह काले जादू में महारथी था।

 

कथित रूप से राजकुमारी के रूप को देख तांत्रिक मोहित हो गया था और राजकुमारी से प्रेम करने लग गया और राजकुमारी को हासिल करने के बारे में सोचने लगा। लेकिन रत्नावती ने कभी उसे पलटकर नहीं देखा।

 

जिस दुकान से राजकुमारी के लिए इत्र जाता था उसने उस दुकान में जाकर रत्नावती को भेजे जाने वाली इस की बोतल पर काला जादू कर उस पर वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया। जब राजकुमारी को सच्चाई पता चल गई, तो उसने इत्र की शीशी पास ही एक पत्थर फेंक दी। इससे शीशी टूट गई और इत्र बिखर गया।

 

काला जादू होने के कारण पत्थर सिंधु सेवड़ा के पीछे हो लिया और उसे कुचल डाला। सिंधु सेवड़ा तो मर गया, लेकिन मरने से पहले उस तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वाले सभी लोग जल्द ही मर जाएंगे और दुबारा जन्म नहीं लेंगे। उनकी आत्मा इस किले में ही भटकती रहेंगी। आज 21वीं सदी में भी लोगों में इस बात को लेकर भय है कि भानगढ़ में भूतों का निवास है।

 

सूर्यास्त के बाद प्रवेश निषेध

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को खुदाई के बाद सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल रहा था। अब किला भारत सरकार की देख रेख में आता है। किले के चारों तरफ आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती है। एएसआई ने सूर्यास्त बाद किसी के भी यहां रुकने को प्रतिबंधित कर रखा है।

Sunday, 18 April 2021

ghost book

आज हम आपको एक ऐसी किताब के बारे में बताने वाले हैं जो शैतान द्वारा लिखीं गई है और वो भी सिर्फ एक रात में!! जानकर चौंक गए ना, तो आइये दोस्तों अब हम जानते हैं, इसके पीछे का रहस्य। आज में जिस किताब की बात करने वाला हूं उस किताब का नाम है “कोडेक्स गिगास”.जिसे शैतान की बाइबल भी कहा जाता है। Codex Gigas के रहस्य को जानकर खुद वैज्ञानिक भी हैरान हैं।इस किताब को 13 वी शताब्दी में बोहेमिया में बनाया गया था। इस किताब की खास बात यह है कि ये किताब 160 प्रकार के चमड़े के उपर लिखीं गई है। आखिर ये कैसे मुमकिन है? ये करना इंसान के बस की बात नहीं है। और वो भी उस वक्त जब कोई प्रसाधन नहीं थे। ये किताब देखने भी काफ़ी बड़ी है। कोडेक्स गिगास का वजन करीब 74.8 किलोग्राम हैं। इसे उठाने के लिए कम से कम दो लोगों की जरूर पडती है।

Codex Gigas devil.jpg
Codex Gigas facsimile.jpg


1877 में Codex Gigas को स्टोकहोम स्वीडन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में संग्रहित किया ग या है। इसे दुनिया में सबसे बड़ा मौजूदा मध्ययुगीन प्रकाशित पांडुलिपि, 92 सेमी की लंबाई में है।  शैतान के बहुत ही असामान्य पूर्ण-पृष्ठ चित्र और इसकी रचना के कारण इसे बेहद ही अजीब माना जाता है। 16 वीं शताब्दी के अंत में, कोडेक्स को हैब्सबर्ग शासक रूडोल्फ II के संग्रह में शामिल किया गया था।  तीस साल के युद्ध (1648) के अंत में प्राग के स्वीडिश घेराबंदी के दौरान, पांडुलिपि को युद्ध लूट के रूप में लिया गया और स्टॉकहोम में स्थानांतरित कर दिया गया।

 किताब को किसने लिखा था? और क्यों?

पौराणिक कथा के अनुसार इस पांडुलिपि को शैतान के साथ ऐक समझोते से बनाई गई थीं। 

हुआ यूं था कि हरमन द रिक्ल्यूज नामक एक भिक्षु को इसे बनाने का आदेश दिया गया है। क्योंकि मठ वालों ने मठ की प्रतिज्ञा को तोडने के लिए हरमन को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन उसने कहा कि मुझसे गलती हो गई और इतनी बड़ी सजा तुम नहीं दे सकते। तो मठाधीशों ने ये फैसला किया कि इसे पांडुलिपि की किताब लिखने को दी जाए और वो भी एक ही दिन में। लेकिन एक दिन में पूरी किताब लिखना असंभव है। और मठवालों ने ये भी कहा कि अगर भिक्षु ये नहीं कर पाता तो उसे मौत की सजा मिलेगी।

Devil codex Gigas.jpg


निराश होकर भिक्षु ने शैतान का आह्वान किया और शैतान को बुलाया। शैतान जब प्रगट हुआ तो उसने कहा कि क्या चाहीये बोलों, तुम्हारी जो भी इच्छा होगी वो में पूरी करुंगा लेकिन बदले में मुझे तुम्हारी आत्मा चाहिए। भिक्षु ने हाँ कहकर शैतान से समझोता कर लिया। फिर उसके बाद उसी रात में शैतान ने पूरी किताब जानवर के खाल से बने पतों पर लिख दी। उसके बाद सुबह भिक्षु ने उस किताब को मठवालों को दे दी। वो लोग समज नहीं पाए कि कैसे भिक्षु ने एक ही रात में ये किताब लिख दी। लेकिन उस दिन के बाद भिक्षु को सजा से मुक्ति मिल गई। इस किताब में शैतान के कई चित्रों को चित्रित किया गया है। इस किताब में भूत प्रेत, जादू के मंत्र,बोहेमियन लोगों की सूची और वहां के संतो द्वारा दिए गए सूचन लिखें गयें है।

यह 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में बोहेमिया में पोदलाज़िस के बेनेडिक्टिन मठ में बनाया गया था, जो आधुनिक चेक गणराज्य में एक क्षेत्र है। इसमें पूरा वुलगेट बाइबिल और अन्य लोकप्रिय रचनाएँ शामिल हैं, जो सभी लैटिन में लिखी गई हैं। ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट्स के बीच अन्य लोकप्रिय मध्ययुगीन संदर्भ कार्यों का चयन होता है: जोसेफस की एंटीक्विटीज ऑफ द यहूदियों और डी बेलो आयोडिको, सेविले के एन्साइक्लोपीडिया ईटमोलोगिया के कोसिड, कोस्मस ऑफ प्राग, और चिकित्सा कार्य; ये अर्स मेडिसिन के ग्रंथों का एक प्रारंभिक संस्करण हैं, और कॉन्स्टेंटाइन द अफ्रीकन की दो पुस्तकें हैं।

अंततः प्राग में रुडोल्फ II की शाही लाइब्रेरी के लिए अपना रास्ता तलाशते हुए, पूरे संग्रह को तीस साल के युद्ध के दौरान 1648 में स्वीडिश द्वारा युद्ध की लूट के रूप में लिया गया था, और पांडुलिपि अब स्टॉकहोम में स्वीडन के नेशनल लाइब्रेरी में संरक्षित है। यह आम जनता के लिए प्रदर्शन पर है।

बहुत बड़े प्रबुद्ध बाईबिल रोमनस्क्यू मठवासी पुस्तक उत्पादन की एक विशिष्ट विशेषता थे, लेकिन इस समूह के भीतर भी कोडेक्स गिगास का पृष्ठ-आकार असाधारण है।

story of prithvi raj chauhan

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान'


ये दोहा चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को संकेत देने के लिए कहा था. जैसे ही इस दोहे को सुनकर मोहम्मद गोरी ने 'शाब्बास' बोला. वैसे हीं अपनी दोनों आंखों से अंधे हो चुके पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को अपने शब्दभेदी बाण के द्वारा मार डाला.

वहीं दुखद ये हुआ कि जैसे ही मोहम्मद गोरी मारा गया उसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने अपनी दुर्गति से बचने की खातिर एक-दूसरे की हत्या कर दी.  इस तरह पृथ्वीराज ने अपने अपमान का बदला ले लिया. वहीं जब पृथ्वीराज के मरने की खबर  संयोगिता ने सुनी तो उसने भी अपने प्राण ले लिए. अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी क्षेत्र में पृथ्वीराज चौहान की समाधि आज भी  है, अफगानिस्तान में 800 साल से राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान की समाधि को शैतान बताकर और उस पर जूते मारकर अपमानित करते थे, जिसके बाद भारत सरकार ने उनकी अस्थियां भारत मंगवाने का फैसला किया था.

बता दें, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लोगों की नजरों में मोहम्मद गोरी हीरो बना हुआ है. जबकि पृथ्वीराज चौहान को अपना दुश्मन मानते हैं. चुकी पृथ्वीराज चौहान ने गोरी की हत्या की थी. यही वजह है कि पृथ्वीराज चौहान की समाधी को वे लोग तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं.

mahabharat untold story

महल की घटना के बाद, पांडव एक जंगल में गए। लंबे समय तक चलने के बाद, वे जंगल के उस हिस्से में आए जहां एक हिडि़म नाम का दानव और उनकी बहन हिडिम्बा रहते थे।

कुंती और पांडव थके हुए थे और सब सो गए भीम जाग रहा था और कोई खतरा ना रहे उस पर नजर रख रहा था। हिडिम और हिडिम्बा ने मनुष्यों की गंध महसूस की और उसके बाद हिडिम ने हिडिम्बा को वहा जाने के लिए कहा। जैसे ही हिडिम्बा ने भव्य भीमा को देखा, वह उसके साथ प्यार में गिर गई। उसने एक सुंदर महिला का रूप ले लिया और उसके पास गया उसने कहा, मैं हिडिम्बा हूं, मेरा भाई एक राक्षस है, वह आप सब खाएगा। भीमा ने मुस्कुरा दी और कहा, चिंता मत करो, मैं अपने भाई को हराने के लिए काफी मजबूत हूं।

जब हिडिम्बा लंबे समय तक वापस नहीं आया, तो हिडि़ंब ने उसे खोजकर देखा और भीम से बात करते देखा। हिडि़ंब ने गुस्से से कहा के मैंने तुम्हें मानव को मारने के लिए भेजा है और तुम उससे बात कर रही हैं। मैं उसे खुद मार दूंगा। ऐसा कहकर, उन्होंने भीम पर हमला किया भीम और हिडि़ंब के साथ एक भयंकर लड़ाई हुई जिसमे भीम ने हिडि़ंब को मार दिया गड़गड़ाहट से चार पांडवों और कुंती जाग गए। हिडिम्बा ने उन्हें बताया कि वह एक राक्षसी थी और भीम से शादी करने की कामना की थी। कुंती की अनुमति के साथ शादी हुई। कुछ समय बाद हिडिम्बा ने एक बेटा को जन्म दिया जिसे घोटोकचा नाम दिया गया था।

कुछ वर्षों के बाद, कुंती और पांडव ने हिडिम्बा और घाटोकचका छोड़ने का फैसला किया, जो एक मजबूत लड़का बन गया था। पांडवों ने हिडिम्बा से वादा किया कि जब भी उन्हें उनकी ज़रूरत होती है, वे उनके पास आएंगे।

Thursday, 25 March 2021

jai baan toop story

इस तोप से निकले गोले ने धरती को फाड़कर बना दिया था तालाब, नाम से ही कांप जाते थे 

नई दिल्ली। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश का इतिहास जितना शक्तिशाली है, उतना ही समृद्ध हमारे देश के राजा-महाराजाओं की गौरव-गाथा भी है। आज हम आपको राजा सिंह द्वारा बनाए गए जयगढ़ के किले की एक बेहद ही खास चीज़ से रूबरू कराने जा रहे हैं। दरअसल आज हम आपको जयबाण तोप के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इस किले के डूंगर दरवाजे पर रखा हुआ है। इस तोप की कुल लंबाई करीब 32 फीट है। जयबाण तोप के बारे में कहा जाता है कि यह एशिया का सबसे बड़ी तोप है।

50 टन वज़नी यह तोप 35 किलोमीटर की दूरी पर खड़े अपने दुश्मनों के चीथड़े-चीथड़े करने में माहिर थी। जयबाण तोप की शक्ति का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इससे एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर खर्च हो जाता था। जयबाण तोप के बारे में चाकसू का किस्सा सबसे यादगार है। जयपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित इस कस्बे में जयबाण तोप से निकला एक गोला आ गिरा था। जिस जगह पर वह गोला गिरा था, वहां इतना बड़ा गड्ढा हो गया कि एक तालाब बन गया था।

इस तोप में इस्तेमाल किए जाने वाले गोले बनाने के लिए भी एक खास तरह का उपकरण इस्तेमाल किया जाता था। जयबाण में इतनी जगह है कि उसमें 8 मीटर लंबे बैरल भी आसानी से रखे जा सकते थे। जयबाण के बारे में इतिहासकारों का कहना है कि असाधारण वज़न होने की वजह से ये कभी किले से बाहर नहीं निकल पाया। इतना ही नहीं इसका इस्तेमाल कभी भी किसी युद्ध में नहीं किया गया था। जयगढ़ किले में मौजूद जयबाण तोप के बारे में आपको वहां सभी जानकारियां मिल जाएगी। अरावली की पहाड़ियों में बसा देश का एतिहासिक जयगढ़ किला साल 1726 में बना था। यह किला बाहर से देखने में जितना शानदार है, अंदर से इसका नज़ारा उतना ही ज़बरदस्त है।

Wednesday, 10 March 2021

Codex gigas haunted book

आज हम आपको एक ऐसी किताब के बारे में बताने वाले हैं जो शैतान द्वारा लिखीं गई है और वो भी सिर्फ एक रात में!! जानकर चौंक गए ना, तो आइये दोस्तों अब हम जानते हैं, इसके पीछे का रहस्य। आज में जिस किताब की बात करने वाला हूं उस किताब का नाम है “कोडेक्स गिगास”.जिसे शैतान की बाइबल भी कहा जाता है। Codex Gigas के रहस्य को जानकर खुद वैज्ञानिक भी हैरान हैं।इस किताब को 13 वी शताब्दी में बोहेमिया में बनाया गया था। इस किताब की खास बात यह है कि ये किताब 160 प्रकार के चमड़े के उपर लिखीं गई है। आखिर ये कैसे मुमकिन है? ये करना इंसान के बस की बात नहीं है। और वो भी उस वक्त जब कोई प्रसाधन नहीं थे। ये किताब देखने भी काफ़ी बड़ी है। कोडेक्स गिगास का वजन करीब 74.8 किलोग्राम हैं। इसे उठाने के लिए कम से कम दो लोगों की जरूर पडती है।

Codex Gigas devil.jpg
Codex Gigas facsimile.jpg


1877 में Codex Gigas को स्टोकहोम स्वीडन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में संग्रहित किया ग या है। इसे दुनिया में सबसे बड़ा मौजूदा मध्ययुगीन प्रकाशित पांडुलिपि, 92 सेमी की लंबाई में है।  शैतान के बहुत ही असामान्य पूर्ण-पृष्ठ चित्र और इसकी रचना के कारण इसे बेहद ही अजीब माना जाता है। 16 वीं शताब्दी के अंत में, कोडेक्स को हैब्सबर्ग शासक रूडोल्फ II के संग्रह में शामिल किया गया था।  तीस साल के युद्ध (1648) के अंत में प्राग के स्वीडिश घेराबंदी के दौरान, पांडुलिपि को युद्ध लूट के रूप में लिया गया और स्टॉकहोम में स्थानांतरित कर दिया गया।

 किताब को किसने लिखा था? और क्यों?

पौराणिक कथा के अनुसार इस पांडुलिपि को शैतान के साथ ऐक समझोते से बनाई गई थीं। 

हुआ यूं था कि हरमन द रिक्ल्यूज नामक एक भिक्षु को इसे बनाने का आदेश दिया गया है। क्योंकि मठ वालों ने मठ की प्रतिज्ञा को तोडने के लिए हरमन को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन उसने कहा कि मुझसे गलती हो गई और इतनी बड़ी सजा तुम नहीं दे सकते। तो मठाधीशों ने ये फैसला किया कि इसे पांडुलिपि की किताब लिखने को दी जाए और वो भी एक ही दिन में। लेकिन एक दिन में पूरी किताब लिखना असंभव है। और मठवालों ने ये भी कहा कि अगर भिक्षु ये नहीं कर पाता तो उसे मौत की सजा मिलेगी।

Devil codex Gigas.jpg


निराश होकर भिक्षु ने शैतान का आह्वान किया और शैतान को बुलाया। शैतान जब प्रगट हुआ तो उसने कहा कि क्या चाहीये बोलों, तुम्हारी जो भी इच्छा होगी वो में पूरी करुंगा लेकिन बदले में मुझे तुम्हारी आत्मा चाहिए। भिक्षु ने हाँ कहकर शैतान से समझोता कर लिया। फिर उसके बाद उसी रात में शैतान ने पूरी किताब जानवर के खाल से बने पतों पर लिख दी। उसके बाद सुबह भिक्षु ने उस किताब को मठवालों को दे दी। वो लोग समज नहीं पाए कि कैसे भिक्षु ने एक ही रात में ये किताब लिख दी। लेकिन उस दिन के बाद भिक्षु को सजा से मुक्ति मिल गई। इस किताब में शैतान के कई चित्रों को चित्रित किया गया है। इस किताब में भूत प्रेत, जादू के मंत्र,बोहेमियन लोगों की सूची और वहां के संतो द्वारा दिए गए सूचन लिखें गयें है।

यह 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में बोहेमिया में पोदलाज़िस के बेनेडिक्टिन मठ में बनाया गया था, जो आधुनिक चेक गणराज्य में एक क्षेत्र है। इसमें पूरा वुलगेट बाइबिल और अन्य लोकप्रिय रचनाएँ शामिल हैं, जो सभी लैटिन में लिखी गई हैं। ओल्ड एंड न्यू टेस्टामेंट्स के बीच अन्य लोकप्रिय मध्ययुगीन संदर्भ कार्यों का चयन होता है: जोसेफस की एंटीक्विटीज ऑफ द यहूदियों और डी बेलो आयोडिको, सेविले के एन्साइक्लोपीडिया ईटमोलोगिया के कोसिड, कोस्मस ऑफ प्राग, और चिकित्सा कार्य; ये अर्स मेडिसिन के ग्रंथों का एक प्रारंभिक संस्करण हैं, और कॉन्स्टेंटाइन द अफ्रीकन की दो पुस्तकें हैं।

अंततः प्राग में रुडोल्फ II की शाही लाइब्रेरी के लिए अपना रास्ता तलाशते हुए, पूरे संग्रह को तीस साल के युद्ध के दौरान 1648 में स्वीडिश द्वारा युद्ध की लूट के रूप में लिया गया था, और पांडुलिपि अब स्टॉकहोम में स्वीडन के नेशनल लाइब्रेरी में संरक्षित है। यह आम जनता के लिए प्रदर्शन पर है।

बहुत बड़े प्रबुद्ध बाईबिल रोमनस्क्यू मठवासी पुस्तक उत्पादन की एक विशिष्ट विशेषता थे, लेकिन इस समूह के भीतर भी कोडेक्स गिगास का पृष्ठ-आकार असाधारण है।

Friday, 5 February 2021

kulbhata real ghost story

चुड़ैल की वजह से एक रात में खाली हुआ गांव ! 250 साल से इस रास्ते से कोई नहीं गुजरा

 

जैसलमेर से कुछ ही किलोमीटर की दुरी पर एक गाँव बसा हुआ है.

इस गाँव को जाने वाले सभी रास्ते कभी खोल दिए जाते हैं तो कभी सील हो जाते हैं.

रात के समय तो यहाँ जाना बिलकुल मना है. शाम होने से पहले ही गाँव को जाने वाले सभी रास्ते सील कर दिए जाते हैं. अगर कोई व्यक्ति भूल से अन्दर रह जाता है तो उसकी सुरक्षा की गारंटी कोई नहीं लेता है.

हम बात कर रहे हैं कुलभाटा गाँव की.

राजस्थान का यह एक ऐसा गाँव है जहाँ कोई भी नहीं रहता है. कहते हैं कि सालों पहले यह गाँव एक भरा पूरा गाँव था. चारों तरफ खुशहाली ही थी. लेकिन फिर गाँव पर एक चुड़ैल का हमला हुआ और उस हमले की वजह से एक ही रात में पूरा गाँव खाली हो गया था.

आसपास के गाँव वाले बताते हैं कि वह चुड़ैल इसी गाँव में रहती है और आज वह पहले से बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो चुकी है.

कुछ साल पहले इस घटना पर एक फिल्म भी बनी थी. जिसको सच्ची कहानी पर आधारित बताया गया था. लेकिन ऐसे बहुत से केस हो चुके हैं कि इस चुड़ैल ने कुछ लोगों की जान भी ली है.

कई बार यह चुड़ैल पास के गाँव वालों को भी तंग करती है. रात के समय गाँव में कुछ अजीब तरह की आवाजें आती रहती हैं. कई बार कोई महिला रोती रहती है तो कई बार तो घरों के टूटकर गिरने की भी आवाजें आती हैं. लेकिन सुबह वहां कोई भी घर टूटा नहीं मिलता है.

क्या है पूरी कहानी

इस कहानी को कुछ 250 साल पहले की कहानी बताया जाता है.

गाँव के अन्दर अचानक से ही एक चुड़ैल आ गयी थी. इस चुड़ैल को अमर रहने के लिए जवान लड़कियों की बलि चाहिए होती थी तब उस चुड़ैल ने गाँव से एक-एक कर लड़कियों को खत्म करना शुरू कर दिया.

इस चुड़ैल का नाम कालो है. वह चुड़ैल काफी खतरनाक थी. लेकिन एक दिन गाँव वालों ने साहस करते हुए इस चुड़ैल को बाबा की मदद से पकड़ा और उसको जमीन में दफ़न कर दिया.

गाँव वालों को लगा था कि परेशानी शायद अब खत्म हो गयी है. लेकिन यह मात्र उनका भ्रम था. कुछ ही दिनों बाद चुड़ैल वापस आई और इस बार वह बहुत ज्यादा गुस्से में थी. गाँव वालों को अपनी जान बचाते हुए इस गाँव को एक ही रात में खाली करना पड़ा था.

250 साल से सुनसान एक रास्ता

गाँव में एक सड़क है, जहाँ पर कहते हैं कि 250 सालों से कोई नहीं गुजरा है.

कुछ लोग इस रास्ते से जाने की कोशिश भी कर रहे थे लेकिन वह जिन्दा नहीं बचे थे. आज यह गाँव सुनसान पडा हुआ है. आसपास के लोग आये दिन चुड़ैल की हरकतों से वाकिफ रहते हैं.

बेशक आप इस कहानी को काल्पनिक मान सकते हैं लेकिन अगर आपको कहानी पर यकीन ना हो तो आप एक बार पास के गाँव में जाकर इसी प्रमाणिकता को जांच सकते हैं.

लेकिन एक बात तो सच है कि रात के समय आप इस गाँव में रुकने की हिम्मत बिलकुल नहीं कर पायेंगे.

Saturday, 30 January 2021

कहानी अश्वत्थामा की

महाभारत काल का एक व्यक्ति जिसके बारे में यह माना जाता है कि वह आज भी जिंदा है। इस व्यक्ति का नाम है अश्वत्थामा। यह कौरव और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था। इसने महाभारत के युद्घ में कौरवों की ओर से युद्घ किया था। लेकिन अपनी एक गलती के कारण इसे एक शाप मिल जिसके कारण यह दुनिया खत्म होने तक जीवित रहेगा और भटकेगा।


अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं
अश्वत्थामा को दुनिया खत्म होने तक भटकने का शाप देने वाले भगवान श्री कृष्ण थे। यह शाप श्री कृष्ण ने इसलिए दिया क्योंकि इसने पाण्डव पुत्रों की हत्या उस समय की थी जब वह सो रहे थे। इसने ब्रह्माशास्त्र से उत्तरा के गर्भ को भी नष्ट कर दिया था। गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या से क्रोधित होकर श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को भयानक शाप दिया। अश्वत्थाम के इस घोर पाप का अनुचित लेकिन एक बड़ा कारण था।

अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं

महाभारत के युद्घ में द्रोणाचार्य का वध करने के लिए पाण्डवों ने झूठी अफवाह फैला दी कि अश्वत्थामा मर चुका है। इससे द्रोणाचार्य शोक में डूब गए और पाण्डवों ने मौका देखकर द्रोणाचार्य का वध कर दिया। अपने पिता की छल से हुई हत्या का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने पाण्डव पुत्रों की हत्या की। शाप के कारण शिर पर घाव लिए यहां भटक रहा है अश्वत्थामा।

अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं

पाण्डवों की हत्या के बाद जब अश्वत्थामा भागा तब भीम ने उसका पीछा किया और अष्टभा क्षेत्र जो वर्तमान में गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा के पास स्थित है। यहां दोनों के बीच गदा युद्घ हुआ। यहां भीम की गदा जमीन से टकराने के कारण एक कुण्ड बन गया है। पास ही में अश्वत्थाम कुंड भी है। यहां लोग मानते हैं कि आज भी रात के समय अश्वत्थामा मार्ग से भटके हुए लोगों को रास्ता दिखाता है।
अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं

द्रोणनगरी में स्थित टपकेश्वर स्वयंभू शिवलिंग महर्षि द्रोणाचार्य की सिर्फ तपस्थली मानी जाती है। यहीं गरीबी के कारण दूध नहीं मिलने पर अश्वत्थामा ने भगवान से दूध प्राप्ति के लिए छह माह तक कठोर तपस्या की थी। अश्वत्थामा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दूध प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और पहली बार अश्वत्थामा ने दूध का स्वाद चखा।
अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं

अश्वत्थामा के बारे में इतनी बात जानने के बाद आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि अश्वत्थामा का नाम कैसे पड़ा। इसकी एक बड़ी रोचक कथा है। अश्वत्थामा ने जब जन्म लिया तब उसने अश्व के समान घोर शब्द किया। इसके बाद आकाशवाणी हुई कि यह बालक अश्‍वत्थामा के नाम से प्रसिद्घ होगा।
अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाल

अश्वत्थामा के सिर पर जन्म से ही एक मणि मौजूद था। द्रौपदी ने अर्जुन की प्रार्थना पर गुरु पुत्र को प्राण दान दे दिया लेकिन सजा के तौर पर मणि छिन लिया और उसके बाल काट लिए। उन दिनों बाल काट लेने का मतलब मृत्युदंड माना जाता था।
अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं

मध्यप्रदेश में महू से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित विंध्यांचल की पहाड़ियों पर खोदरा महादेव विराजमान हैं। माना जाता है कि यह अश्वत्थामा की तपस्थली है। ऐसी मान्यता है कि आज भी अश्वत्थामा यहां आते हैं।
अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं

महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद कौरवों की ओर से सिर्फ तीन योद्घा बचे थे कृप, कृतवर्मा और अश्वत्थामा। कृप हस्तिनापुर चले आए और कृतवर्मा द्वारिका। शाप से दुःखी अश्वत्थामा को व्यास मुनि ने शरण दिया। मध्यप्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखंड के वनों में आज भी अश्वत्थामा को देखे जाने की चर्चाएं आती रहती है।
अमर अश्वत्थामा के यह दस रहस्य चौंकाने वाले हैं

मध्यप्रदेश के असीरगढ़ के किले में एक प्राचीन शिव मंदिर है। भगवान शिव के इस मंदिर में हर दिन कौन गुलाल और फूल अर्पित करके चला जाता है यह एक रहस्य है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर तक आने का एक गुप्त रास्ता है जिससे अश्वत्थामा आकर यहां शिव जी की पूजा कर जाता है।


कहानी गोविंद देव जी की

Shri Radha Govind Dev Ji


जयपुर। पांच हजार साल पहले भगवान श्री कृष्ण के प्रपोत्र व मथुरा नरेश ब्रजनाभ की बनवाई गई गोविंद देवजी की मूर्ति ने जयपुर को भी वृंदावन बना दिया। राधारानी और दो सखियों के संग विराजे गोविंददेव जी को कनक वृंदावन से सिटी पैलेस परिसर के सूरज महल में विराजमान किया गया। औरंगजेब के दौर में देवालयों को तोडऩे के दौरान चैतन्य महाप्रभु के शिष्य शिवराम गोस्वामी राधा गोविंद को वृंदावन से बैलगाड़ी में बैठाकर सबसे पहले सांगानेर के गोविंदपुरा पहुंचे थे।

आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में राधा गोविंद का भव्य मंदिर बनवाने के बाद गोविंदपुरा को गोविंददेवजी की जागीर में दे दिया था। जयसिंह द्वितीय ने जयपुर बसाया तब राधा गोविंद जी को सिटी पैलेस के सूरज महल में ले आए। राधा गोविंद देव जी के वृंदावन से जयपुर में विराजमान होने के बाद ब्रज क्षेत्र में राधा कृष्ण की भक्ति का प्रचार करने वाले कई सम्प्रदायों के पीठ भी यहां आ गए।

Shri Radha Govind Dev Ji

 

मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में बनवाया मंदिर
करीब पांच हजार साल पहले बनी गोविंददेवजी और पुरानी बस्ती की गोपीनाथजी की मूर्तियों को करीब 480 साल पहले चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी आदि ने वृंदावन के गोमा टीले में से निकाला था। आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में मंदिर बनवाया। मंदिर निर्माण के लिए आमेर से कल्याणदास, माणिकचन्द चौपड़ा, विमलदास आदि कारीगरों को वृंदावन भेजा गया। राधा रानी को भी उड़ीसा से लाकर गोविंद के साथ विराजित किया गया। गोविंद के जयपुर आने पर राधा माधव गौड़ीय परम्परा में राधा दामोदर और गोपीनाथजी आदि के मंदिर बने जिनमें गोविंद भक्ति की रसधारा बहने लगी।


विश्व का सबसे बड़ा अश्वमेघ यज्ञ जयपुर में
देवर्षि कलानाथ शास्त्री के मुताबिक चैतन्य महाप्रभु की परम्परा के संत जयपुर को दूसरा वृंदावन भी मानते हैं। निम्बार्क संतों ने परशुरामद्वारा को निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ बनाया। ब्रह्मपुरी में गोकुलनाथ जी मंदिर और परशुरामद्वारा में बलदेव कृष्ण का मंदिर निम्बार्क सम्प्रदाय का है। सवाई जयसिंह द्वितीय ने निम्बार्क आचार्यो की सलाह पर विश्व का सबसे बड़ा अश्वमेघ यज्ञ जयपुर में सम्पन्न कराया।

वृंदावन से आई लाडलीजी

श्रीनाथजी का बल्लभ सम्प्रदाय, हित हरिवंशीय समाज, शुक व ललित सम्प्रदाय की परम्परा के संतों ने राधा कृष्ण भक्ति की अलख जगाई। आठ प्रिय सखियों संग वृंदावन से आई लाडलीजी (राधारानी) का रामगंज में मंदिर बना। भागवत पुराण में नंदबाबा के संग श्री कृष्ण के आमेर में अम्बिका वन आने के प्रसंग ने भी जयपुर में कृष्ण भक्ति को बढ़ाया।

 

मीरा की कृष्ण प्रतिमा की जगत शिरोमणि मंदिर में स्थापना
चितौडगढ़ के किले में मीरा की कृष्ण प्रतिमा को वर्ष 1656 में आमेर के जगत शिरोमणि मंदिर में स्थापना से भी कृष्ण भक्ति ऊंचाइयों पर पहुंची। पंडित युगल किशोर शास्त्री के प्रेम भाया मंडल के ढूढाड़ी भजन आज भी बुजुर्गो की जबान पर है।

story nahargarh fort

भूत के खौफ से रुक गया था इस किले का काम, खास रानियों के लिए बने थे कमरे

आत्मा ने रोका था किले का काम...
- कहा जाता है कि किले के निर्माण के दौरान अजीब घटनाएं सामने आ रहीं थी। हर दूसरे दिन मजदूरों को अपना काम बिगड़ा हुआ मिलता था।
- इसके बाद पता करने पर जानकारी मिली कि य़ह जगह राठौर राजा नाहर सिंह भोमिया की थी। लोगों का मानना था कि उनकी आत्मा की वजह से निर्माण में इस तरह की दिक्कतें सामने आ रही थी।
- जिसके बाद सवाई राजा मान सिंह ने पास के पुराना घाट पर उनके लिए एक छोटा सा महल बनवाया। नाहर सिंह की आत्मा को जगह मिलने के बाद महल के निर्माण में कभी भी गड़बड़ी नहीं आई।
- इस किले का पहले नाम सुदर्शनगढ़ था, लेकिन राठौर राजा नाहर सिंह भोमिया की आत्मा का किस्सा आने के बाद इसका नाम बदलकर नाहरगढ़ कर दिया गया।

अकबर के नौ रत्नों में एक ने बनवाया था ये महल

- अकबर के नौरत्नों में से एक रहे महाराजा मान सिंह ने नाहरगढ़ किले का निर्माण करवाया था। महाराजा मान सिंह ने ही जयपुर की स्थापना भी की थी। सन् 1734 ईसवीं में इस किले का निर्माण करवाया गया।
- अरावली की पहाड़ियों पर बना यह किला आमेर और जयगढ़ किले के साथ मिलकर जयपुर शहर को सुरक्षा देने के हिसाब से बनवाया गया था। इस किले में आमिर खान से लेकर सुशांत सिंह राजपूत की फिल्में शूट हो चुकी हैं।

रानियों के लिए करवाया था शाही भवनों का निर्माण

- राजा मान सिंह की कई रानियां थी, यही वजह थी कि उन्होंने सभी रानियों के लिए शाही कमरे बनवाए थे।
- इसके लिए खास तौर पर आर्किटेक्ट को निर्देश दिए गए थे। इसे बनाने का श्रेय जयधर भट्टाचार्य को जाता है जिन्होंने रानियों ने के भवन का निर्माण किया था।
- रानियों के लिए मानवेन्द्र भवन में एक जैसे कई शाही कमरे बनवाए गए थे। जिनमें टॉयलेट से लेकर किचन तक ही व्यवस्था दी गई थी।

जानवरों का खतरा

इस किले के पीछे काफी बड़ा जंगल है। बताया जाता है कि राजा मानसिंह जंगल का इस्तेमाल शिकार के लिए करते थे। आज भी यहां कई जंगली जानवर मौजूद हैं। यही कारण है कि यहां पर्यटकों को दिन में भी महल या केसर क्यारी(किले का हिस्सा) के आस-पास नहीं घूमने देते।

कहानी सारंगपुर हनुमानजी की

इस अनोखे मंदिर में महाबली हनुमान जी के चरणों में नारी रूप में हैं शनि देव

kashtbhanjan hanuman mandir sarangpur

इस अनोखे मंदिर में महाबली हनुमान जी के चरणों में नारी रूप में हैं शनि देव

शनि देव को सबसे क्रोधित देवता माना जाता है। कहा जाता है कि इनकी बुरी दृष्टि किसी व्यक्ति पर पड़ जाए तो उसके जीवन में परेशानियां आने लगती है। हमारे हिन्दू ग्रंथों में माना गया है जो भी व्यक्ति भगवान हनुमान जी की भक्ति करता है, उस पर शनि देव का प्रकोप नहीं रहता है। कहा जाता है कि महाबली हनुमान के आगे शनि देव भी कुछ नहीं कर पाते हैं।

आज हम आपको ऐसा मंदिर के बारे में बताएंगे जहां शनि देव महाबली हनुमान जी के चरणों में नारी रूप में हैं। अब सवाल ये भी उठता है कि आखिर वह कौन सा कारण था कि शनि देव को नारी रूप धारण करना पड़ा और महाबली हनुमान जी को चरणों में बैठना पड़ा? भारत में ऐसा मंदिर कहा है? तो अइये जानते हैं....

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार धरती पर शनि देव प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। शनि देव की बुरी दृष्टि से मानव तो मानव देवता भी बहुत परेशान हो गए थे। इसके बाद सभी ने शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए महाबली हनुमान जी को याद किया और उनसे रक्षा की गुहार लगाई। भक्तों की गुहार पर हनुमान जी ने शनि देव को सजा देने के लिए निकल पड़े।

जब इस बात की जानकारी शनि देव को लगी तो वो भयभीत हो गए। क्योंकि उन्हें पता था कि हनुमान जी के गुस्से से कोई रक्षा नहीं कर पाएगा। कथाओं के अनुसार, शनि देव हनुमान जी के गुस्से बचने के लिए उपाय निकाला और नारी का रूप धारण कर लिया।

सभी जानते हैं कि हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं और वे किसी स्त्री पर हाथ नहीं उठाते, ना ही बुरा बर्ताव करते। बस यही सोच कर शनि देव ने हनुमान जी से बचने के लिए नारी का रूप धराण कर लिए और भगवान हनुमान से उनके चरणों में शरण मांग ली। हनुमान जी को इस बात की जानकारी हो गई थी शनि देव ही स्त्री का रूप धारण किए हुए हैं। इसके बावजूद हनुमान जी ने शनि देव को नारी रूप में माफ कर दिया। उसके बाद शनि देव ने हनुमान जी के भक्तों पर से अपना प्रकोप हटा लिया।

kashtbhanjan hanuman mandir sarangpur

गुजरात के भावनगर में है मंदिर

ऐसा मंदिर गुजरात के भावनगर स्थि सारंगपुर गांव में है। इस प्रचीन हनुमान मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में हनुमान जी का दर्शन करने आता है और भक्ति करता है, उसके ऊपर से शनि देव का प्रकोप दूर हो जाता है। माना ये भी जाता है कि शनिदेव हनुमान जी के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते हैं।

Wednesday, 27 January 2021

पांडुपोल हनुमान मंदिर की कहानी

पांडुपोल हनुमान : अलवर में हनुमान ने भीम को दिए थे दर्शन, भीम ने गदा के प्रहार से तोड़ डाला था पहाड़

Pandupol Hanuman Temple : Bheem And Hanuman Story In Hindi

आज पांडुपोल हनुमान का मेला है, यहीं पर ही हनुमानजी ने भीम को दर्शन दिए थे।

अलवर. Pandupol Hanuman Temple : Bheem And Hanuman Story In Hindi
अलवर जिले के ( Sariska Tiger Reserve ) सरिस्का बाघ परियोजना के अंर्तगत ( Pandupol Hanuman ) पांडुपोल हनुमान जी लक्खी मेला शुरु हो गया है। वहीं मंदिर में मुख्य भर मेला मंगलवार को है। ( Pandupol Temple ) पांडूपोल हनुमान मंदिर में लक्खी मेले के अवसर पर करीब 50 हजार श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। पांडूपोल हनुमान मंदिर अलवर शहर के करीब 55 किलोमीटर दूर है। सरिस्का के बीचों-बीच स्थित इस हनुमान मंदिर का इतिहास महाभारत काल से है। किवदंती है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान भीम ने अपनी गदा से पहाड़ में प्रहार किया था, गदा के एक वार से पहाड़ टूट गया और पांडवों के लिए रास्ता बन गया।

बजरंग बली ने भीम को दिए थे दर्शन

पांडूपोल में बजरंग बली ने भीम को दर्शन दिए थे। महाभारत काल की एक घटना के अनुसार इसी अवधि में द्रौपदी अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी । एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुन्दर पुष्प आया द्रोपदी ने उस पुष्प को प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे अपने कानों के कुण्डलों में धारण करने की सोची। स्नान के बाद द्रोपदी ने महाबली भीम को वह पुष्प लाने को कहा तो महाबली भीम पुष्प की खोज करता हुआ जलधारा की ओर बढऩे लगा। आगे जाने पर महाबली भीम ने देखा की एक वृद्ध विशाल वानर अपनी पूंछ फैला आराम से लेटा हुआ था। वानर के लेटने से रास्ता पूर्णतया अवरुद्ध था ।

यहां संकरी घाटी होने के कारण भीमसेन के आगे निकलने के लिए कोई ओर मार्ग नही था। भीमसेन ने मार्ग में लेटे हुए वृद्व वानर से कहा कि तुम अपनी पूंछ को रास्ते से हटाकर एक ओर कर लो तो वानर ने कहां कि मै वृद्व अवस्था में हूं। आप इसके ऊपर से चले जाएं, भीम ने कहा कि मैं इसे लांघकर नहीं जा सकता, आप पूंछ हटाएं। इस पर वानर ने कहा कि आप बलशाली दिखते हैं, आप स्वयं ही मेरी पूंछ को हटा लें। भीमसेन ने वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की तो पूंछ भीमसेन से टस से मस भी ना हो सकी। भीमसेन की बार बार कोशिश करने के पश्चात भी भीमसेन वृद्ध वानर की पूंछ को नही हटा पाए और समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नही है ।

 

पांडुपोल हनुमान : अलवर में हनुमान ने भीम को दिए थे दर्शन, भीम ने गदा के प्रहार से तोड़ डाला था पहाड़

भीमसेन ने हाथ जोड़ कर वृद्ध वानर को अपने वास्तविक रूप प्रकट करने की विनती की । इस पर वृद्ध वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया । भीमसेन ने सभी पांडव को वहां बुला कर वृद्ध वानर की लेटे हुए रूप में ही पूजा अर्चना की। इसके बाद पांडवों ने वहां हनुमान मंदिर की स्थापना की जो आज पांडुपोल हनुमान मंदिर नाम से मशहूर है। अब हर मंगलवार व शनिवार को यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र है।

Monday, 18 January 2021

RAJA BHARATHARI STORY


पत्नी के कारण राजा बन गया था संन्यासी, छोटी सी गुफा में की थी तपस्या

6 वर्ष पहले(उस गुफा में जाने का रास्ता जहां राजा भृर्तहरि ने तपस्या की थी।)मध्यप्रदेश स्थापना दिवस विशेष: 1 नवंबर को प्रदेश का स्थापना दिवस है। इस अवसर पर प्रदेश के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति, कला, विकास और सुनी-अनसुनी कहानियों से आपको अवगत कराएगा। इस कड़ी में आज हम आपको बता रहे हैं, राजा भृर्तहरि के बारे में जिन्होंने अपनी पत्नी के कारण राजपाठ छोड़ दिया था।इंदौर। उज्जैन के महाराजा भर्तृहरि के संत बनने के पीछे कई तरह की कहानियां कही-सुनी जाती हैं। दो सबसे प्रचलित कहानियों में से एक के अनुसार अपनी सबसे प्रिय रानी पिंगला की बेवफाई से खिन्न होकर उन्होंने अपना राजपाट अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को दे दिया और खुद गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन कर संन्यास ले लिया। दूसरी कहानी के मुताबिक अपनी मृत्यु की झूठी खबर सुन कर रानी पिंगला के सती हो जाने के बाद वह गुरु गोरखनाथ की शरण में जा पहुंचे थे।

देश के अलग-अलग हिस्सों में उनके बारे में और भी कई कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन एक बात हर जगह मानी जाती है कि कल्पवृक्ष से मिले फल को खाने के कारण वह अमर हैं और खुद से जुड़े स्थानों पर अलग-अलग रूप में अक्सर आया करते हैं। राजा भर्तृहरि को नाथ संप्रदाय के साधु और भक्त अपना देवता मानते हैं। कहा जाता है कि अलवर (राजस्थान) के भर्तृहरि धाम में सदियों से अखंड ज्योति और धूनी जल रही है। स्थानीय लोग इसे भृतहरि के उसी नाम से पुकारते हैं, जिस नाम से राजा से संत बने भर्तृहरि को जाना जाता है। यहां राजा भर्तृहरि की समाधि है और माना जाता है कि इसे ईसा से सौ साल पहले भर्तृहरि के शिष्यों और अनुयायियों ने बनवाया था।

क्या पत्नी के वियोग में हो गए थे सन्यासी


एक कथा के अनुसार भृतहरि की पत्नी पिंगला जब किसी और पुरुष से प्यार करने लगती है, भृतहरि सन्यासी बनकर राज्य छोड़कर दूर चले जाते हैं। और एक कहानी बिल्कुल इसके विपरीत है जिसमें रानी पिंगला पति से बेहद प्रेम करती है। कहानी में राजा भृतहरि एक बार शिकार खेलने गए थे। उन्होंने वहाँ देखा कि एक पत्नी ने अपने मृत पति की चिता में कूद कर अपनी जान दे दी। राजा भृतहरि बहुत ही आश्चर्य चकित हो गए उस पत्नी का प्यार देखकर। वे सोचने लगे कि क्या मेरी पत्नी भी मुझसे इतना प्यार करती है। अपने महल में वापस आकर राजा भृतहरि जब ये घटना अपनी पत्नी पिंगला से कहते हैं, पिंगला कहती है कि वह तो यह समाचार सुनने से ही मर जाएगी। चिता में कूदने के लिए भी वह जीवित नहीं रहेगी। राजा भृतहरि सोचते हैं कि वे रानी पिंगला की परीक्षा लेकर देखेंगे कि ये बात सच है कि नहीं। फिर से भृतहरि शिकार खेलने जाते हैं और वहाँ से समाचार भेजते हैं कि राजा भृतहरि की मृत्यु हो गई। ये खबर सुनते ही रानी पिंगला मर जाती है। राजा भृतहरि बिल्कुल टूट जाता है, अपने आप को दोषी ठहराते हैं और विलाप करते हैं। पर गोरखनाथ की कृपा से रानी पिंगला जीवित हो जाती है। और इस घटना के बाद राजा भृतहरि गोरखनाथ के शिष्य बनकर चले जाते हैं।

या पत्नी के बेवफाई ने बनाया गोरखनाथ का शिष्य

उज्जयिनी अब उज्जैन के नाम से जाना जाता है। यहां के राजा थे विक्रमादित्य। विक्रमादित्य के पिता महाराज गंधर्वसेन थे और उनकी दो पत्नियां थीं। एक पत्नी के पुत्र विक्रमादित्य और दूसरी पत्नी के पुत्र थे भर्तृहरि। गंधर्वसेन के बाद उज्जैन का राजपाठ भर्तृहरि को मिला। क्योंकि भृतहरि विक्रमादित्य से बड़े थे। राजा भृतहरि की दो पत्नियां थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने तीसरा विवाह किया पिंगला से। पिंगला बहुत सुंदर थीं और इसी वजह से भृतहरि उससे ज्यादा प्यार करते थे। राजा पत्नी मोह में अपने कर्तव्यों को भी भूल गए थे। उस समय उज्जैन में एक तपस्वी गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। गोरखनाथ राजा के दरबार में पहुंचे। भृतहरि के आदर सत्कार से तपस्वी गुरु खुश हो गए। प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने राजा एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे। चमत्कारी फल देकर गोरखनाथ वहां से चले गए। राजा ने फल पिंगला को दिया कि पिंगला यह फल खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा तो वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सकेगा। रानी ने चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था और उसने चमत्कारी फल उसे दे दिया। ताकि वैश्या सदैव जवान और सुंदर बनी रहे। वैश्या ने फल पाकर सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह गंदा काम हमेशा करना पड़ेगा। इस फल की सबसे ज्यादा जरूरत हमारे राजा को है। राजा हमेशा जवान रहेगा तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं देता रहेगा। यह सोचकर उसने चमत्कारी फल राजा को दे दिया। राजा वह फल देखकर हतप्रभ रह गए। राजा ने वैश्या से पूछा कि यह फल उसे कहा से प्राप्त हुआ। वैश्या ने बताया कि यह फल उसे कोतवाल ने दिया है। भृतहरि ने कोतवाल को बुलवा लिया। कोतवाल ने बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया है। जब भृतहरि को पूरी सच्चाई मालूम हुई तो वह समझ गया कि पिंगला उसे धोखा दे रही है। पत्नी के धोखे से भृतहरि के मन में वैराग्य जाग गया और वे अपना संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंपकर उज्जैन की एक गुफा में आ गए। इसी गुफा में भृतहरि ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी।

या फिर यह कहानी सच है
एक बार राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला के साथ जंगल में शिकार खेलने के लिए गए हुए थे। वहां काफी समय तक भटकते रहने के बाद भी उन्हें कोई शिकार नहीं मिला। निराश पति-पत्नी जब घर लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें हिरनों का एक झुण्ड दिखाई दिया। जिसके आगे एक मृग चल रहा था। भर्तृहरि ने उस पर प्रहार करना चाहा तभी पिंगला ने उन्हें रोकते हुए अनुरोध किया कि महाराज, यह मृगराज 700 हिरनियों का पति और पालनकर्ता है। इसलिए आप उसका शिकार न करें। भर्तृहरि ने पत्नी की बात नहीं मानी और हिरन पर बाण चला दिया। इससे वह मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़ा। प्राण छोड़ते-छोड़ते हिरन ने राजा भर्तृहरि से कहा, ‘तुमने यह ठीक नहीं किया। अब जो मैं कहता हूं उसका पालन करो। मेरी मृत्यु के बाद मेरे सींग श्रृंगी बाबा को, मेरे नेत्र चंचल नारी को, मेरी त्वचा साधु-संतों को, मेरे पैर भागने वाले चोरों को और मेरे शरीर की मिट्टी पापी राजा को दे देना। मरणासन्न हिरन की करुणामयी बातें सुनकर भर्तृहरि का हृदय द्रवित हो उठा। हिरन का शव घोड़े पर लाद कर वह मार्ग में चलने लगे। रास्ते में उनकी मुलाकात बाबा गोरखनाथ से हुई। भर्तृहरि ने इस घटना से अवगत कराते हुए उनसे हिरन को जीवित करने की प्रार्थना की। इस पर बाबा गोरखनाथ ने कहा- मैं एक शर्त पर इसे जीवनदान दे सकता हूं कि इसके जीवित हो जाने पर तुम्हें मेरा शिष्य बनना पड़ेगा। राजा ने गोरखनाथ की बात मान ली। और सन्यासी हो गए।
इंद्र भी हो गए थे भयभीत
राजा भृतहरि की कठोर तपस्या से देवराज इंद्र भयभीत हो गए। इंद्र ने सोचा की भृतहरि वरदान पाकर स्वर्ग पर आक्रमण करेंगे। यह सोचकर इंद्र ने भृतहरि पर एक विशाल पत्थर गिरा दिया। तपस्या में बैठे भृतहरि ने उस पत्थर को एक हाथ से रोक लिया और तपस्या में बैठे रहे। इसी प्रकार कई वर्षों तक तपस्या करने से उस पत्थर पर भृतहरि के पंजे का निशान बन गया। यह निशान आज भी भृतहरि की गुफा में राजा की प्रतिमा के ऊपर वाले पत्थर पर दिखाई देता है। यह पंजे का निशान काफी बड़ा है, जिसे देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजा भृतहरि की कद-काठी कितनी विशालकाय रही होगी।
यहां है गुफा
उज्जैन में भृतहरि की गुफा स्थित है। इसके संबंध में यह माना जाता है कि यहां भृतहरि ने तपस्या की थी। गुफा के पास ही शिप्रा नदी बह रही है। गुफा के अंदर जाने का रास्ता काफी छोटा है। एक गुफा और है जो कि पहली गुफा से छोटी है। यह गोपीचन्द कि गुफा है जो कि भृतहरि का भतीजा था। गुफा के अंत में राजा भर्तृहरि की प्रतिमा है और उस प्रतिमा के पास ही एक और गुफा का रास्ता है। इस दूसरी गुफा के विषय में ऐसा माना जाता है कि यहां से चारों धामों का रास्ता है। गुफा में भर्तृहरि की प्रतिमा के सामने एक धुनी भी है, जिसकी राख हमेशा गर्म ही रहती है।
अंतिम समय राजस्थान में
राजा भर्तृहरि का अन्तिम समय राजस्थान में बीता। उनकी समाधि अलवर (राजस्थान) के जंगल में है। उसके सातवें दरवाजे पर एक अखण्ड दीपक जलता रहता है। उसे भर्तृहरि की ज्योति माना जाता है। भर्तृहरि महान शिवभक्त और सिद्ध योगी थे और अपने भाई विक्रमादित्य को पुनः स्थापित कर अमर हो गए। विक्रमादित्य उनकी तरह ही चक्रवर्ती निकले और उनके सुशासनकाल में विक्रम संवत की स्थापना हुई, जिसका शुभारंभ आज भी चैत्रमास के नवरात्र से आरंभ होता है।
विक्रमसंवत् से पहले
भर्तृहरि विक्रमसंवत् के प्रवर्तक सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के अग्रज माने जाते हैं। विक्रमसंवत् ईसवी सन् से 56 वर्ष पूर्व प्रारम्भ होता है, जो विक्रमादित्य के प्रौढ़ावस्था का समय रहा होगा। भर्तृहरि विक्रमादित्य के अग्रज थे, अतः इनका समय कुछ और पूर्व रहा होगा। विक्रमसंवत् के प्रारम्भ के विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ लोग ईसवी सन् 78 और कुछ लोग ईसवी सन् 544 में इसका प्रारम्भ मानते हैं। ये दोनों मत भी अग्राह्य प्रतीत होते हैं। फारसी ग्रंथ कलितौ दिमनः में पंचतंत्र का एक पद्य शशिदिवाकर योर्ग्रहपीडनम्श का भाव उद्धृत है। पंचतंत्र में अनेक ग्रंथों के पद्यों का संकलन है। संभवतः पंचतंत्र में इसे नीतिशतक से ग्रहण किया गया होगा। फारसी ग्रंथ 571 ईसवी से 581 ई० के एक फारसी शासक के निमित्त निर्मित हुआ था। इसलिए राजा भर्तृहरि अनुमानतः 550 ई० से पूर्व हम लोगों के बीच आए थे। भर्तृहरि उज्जयिनी के राजा थे। ये विक्रमादित्य उपाधि धारण करने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़े भाई थे।